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नीरज साहब अपने आप में महाकाव्य हैं। उनसे मेरी मुलाकात कैसे हुई ये बड़ा रोचक किस्सा है। 11 फरवरी 2010 को इंदौर में एक कवि सम्मेलन था। वहां जावेद अख्तर साहब और मुझे 'भरोसा पत्रकार सम्मान' साथ में दिया गया। वहां मुनव्वर राणा साहब, राहत इंदौरी साहब, नीरज साहब के साथ देश के नामचीन कवि मौजूद थे। नीरज साहब को किसी ने बताया कि सहारा मीडिया के CEO भी यहां आए हुए हैं। उन्होंने मुझे बुलाया... बोले- अरे, तुम्हारे चेयरमैन को मैंने एक चिठ्ठी लिखी थी, उस चिठ्ठी का जबाव अभी तक नहीं आया। मैंने कहा क्या लिखा था आपने... उन्होंने धीरे से मेरे कान में बताया। मैंने कहा कि व्यस्त आदमी हैं भूल गए होगें। वो जबाव मैं अभी फैक्स पर मंगवा देता हूं। उसी दिन शशांक और मृगांक को मैंने अपने साथ जोड़ लिया। तबसे लगातार उनके संपर्क में रहा। मैं फोन करुं ना करुं उनका फोन जरूर आता था। आखिरी दिनों के मुलाकात की बात है मृगांक नोएडा कैम्पस में बैठे थे...इन्होंने फोन किया कि बाबूजी आए हुए हैं और आप से मिलने की जिद कर रहे है। मैंने कहा कि मैं आता हूं। बोले, वे कह रहे हैं उसके पास जाना है। व्हीलचेयर पर थे। हम लोग साथ में भोजन किया। वो मेरी आखिरी मुलाकात थी। उनके साथ बहुत गहरा रिश्ता रहा।


नीरज साहब से मैंने कहा कि 20वीं सदी का सबसे मेधावी आदमी आचार्य रजनीश को मानता हूँ।

बचपन की बात है। मेरे गांव के कुछ लोग आचार्य रजनीश से मिल कर आए थे। उन लोगों को गांव से निकाल दिया गया, कहा गया कि ये लोग भ्रष्ट हो गए हैं। जब मैं नौ-दस साल का हुआ तो आचार्य रजनीश की एक किताब मिली। 'शिक्षा में क्रांति', इसे पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इस आदमी से सुन्दर आदमी कोई हो ही नहीं सकता। मैंने आचार्य रजनीश को कहीं सुना। उसमें वो गोपाल दास नीरज की कई रचनाओं का जिक्र कर रहे थे।

गोपाल दास नीरज और आचार्य रजनीश की दोस्ती का आधार क्या था? नीरज साहब बोले कि उनसे मेरी दोस्ती सत्तर के दशक में हो गई थी। मैं एक बार आचार्य रजनीश से मिलने पुणे गया था। कई लोग ये कहते थे कि उन्होंने एक लाख किताबें पढ़ी हैं। मैंने आचार्य रजनीश से पूछा कि आपने कितनी किताबें पढ़ गए होंगे? उन्होंने जवाब दिया - अब तक पूरी-पूरी लगभग दो लाख और आधी-अधूरी एक लाख। मैंने पूछा कि इतना तेज कैसे पढ़ते हो, तो बोले कि आप टेस्ट ले लीजिए कैसे पढ़ता हूं। सामने रैक में बहुत सारी किताबें रखीं थीं, उसमें रखी सबसे मोटी किताब निकालीं और निकाल कर उसको दी बोले कि उसने पहला पन्ना देखा, बीच में कुछ पन्नें देखें, आखिरी पन्नें देखें उसके बाद मुझे किताब पकड़ा दी, बोला कहीं से पूछो, मैं अगला पैरा पढ़ के बताऊंगा, बोले कि मैं बीस जगह से पूँछा और आचार्य रजनीश ने उसका अगला पैरा लाइन बाई लाइन(डिट्टो) पढ़ के सुना दिया।

मेरी आस्था थोड़ी सी आचार्य रजनीश में और बढ़ी और मैंने आचार्य रजनीश को उसके बाद और पढ़ा। मैं ये कहता हूं कि बीसवीं सदी का कोई सबसे मेधावी आदमी भारत की धरती पर उतरा है तो वो आचार्य रजनीश थे। आप लोग जहां जीवन में भटकें, उन्हें जरूर पढ़िएगा।

मैं आज सोच रहा था कि आज नीरज जी पर बोलने के लिए कहा जाएगा तो क्या बोलूंगा। मुझे उत्तर उसका यहां आकर मिला! उत्तर मिला कि नीरज जी का पूरा जीवन प्रेम, सौहार्द, सम्मान, सामंजस्य और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए समर्पित रहा। उसमें सबसे बड़ी विधा प्रेम रही। मैं सोचते हुए आ रहा था कि क्या बोलूंगा तो ये कहानी मुझे याद आई। तीन फकीरों को मौत की सजा सुनाई जा रही थी, मौत की सजा कौन दे रहे थे...उस समय के धर्म गुरु दे रहे थे। उसमें बहुत एक मशहूर फकीर हुए नूरी। जल्लाद ने उनका नाम पुकारा नूरी कौन है ? एक लड़के की आवाज आई मैं हूँ...तो जल्लाद ने कहा की तुम तो नूरी नहीं हो.. उसने कहा कि मैं नूरी नहीं हूं मैं नूरी का दोस्त हूं, तो बोला कि भाई तुम्हे फांसी कैसे दूं, ये सजा तो शहंशाह ने नूरी के लिए सुनाई है, उसने कहा कि मैं नूरी का वो दोस्त हूं जो नूरी से सबसे ज्यादा मोहब्बत करता हूं। मैं ये सीखा है कि जब सिर कटाने की बारी आए तो अपना सिर आगे कर देना चाहिए। जीवन जीने की बात आए तो पीछे जाकर खड़ा हो जाना चाहिए। कहते हैं कि नीरज साहब का जो सारा संसार था वो हमें ये सिखाता रहा कि जब गहरा प्रेम हो तो सिर कटाने का हैसियत देता है। और अगर प्रतियोगिता हो तो आप को धक्का दे कर खुद को आगे आकर खड़ा करने की बात सिखाती है। नीरज साहब की प्रेम भरी दुनिया थी। उनका एक गहरा संसार था। मैं कहता हूं फिराक साहब ने भी ऐसी ही लाइनें पढ़ी और मैं ये कहता हूं फिराक साहब का नाम हटा कर नीरज साहब का नाम जोड़ रहा हूं। आने वाली नस्लें तुम पर रस करेंगी कि हम असरों जब उनकों ये मालूम होगा तुमने नीरज को देखा था।

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