किसी कार्यक्रम में जब कुछ लोग इकट्ठे होते हैं तो उसका एक मंतव्य होता है। एक उद्देश्य होता है। जो उद्देश्य है उसके पीछे एक आदमी खड़ा हो या दस आदमी, उद्देश्य एक ही होना चाहिए- समाज कैसे बेहतर और सुंदर बने।
भगवान परशुराम से हम सब का जुड़ाव है, हमारी वंशबेल वहां से आती है। भगवान परशुराम के जीवन के बारे में मैं यहां नहीं बताऊंगा क्योंकि यहां लगभग सभी लोगों को मालूम होगा। जमदग्य मुनि और मां रेणुका के पुत्र परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार भी माने जाते हैं। जिस तरह से अपने पिता की आज्ञा पूरा करने के लिए उन्होंने अपने मां का वध किया, दूसरी तरफ पिता ने जब कहा कि वर मांगो तो वर स्वरूप अपनी मां का जीवन भी वापस मांग लिया। हमारा जो जीवन है, उसका एक ही उद्देश्य है, हम जो कुछ भी करें ब्राह्मण समाज के रूप में या किसी भी अन्य समाज के रूप में, उद्देश्य यही होना चाहिए - हमारे कर्मों से दूसरे के जीवन में सुख उतरे। अगर हम अपने कर्मों से अपने समूह के द्वारा किसी भी समाज में थोड़ा भी सुख उतार पाते हैं तो वही पुण्य है। अगर हमारे कर्मों से किसी को दुख पहुंचता है तो वही पाप है। किसी भी समाज में सभा का एक ही उद्देश्य होना चाहिए। तुलसीदास जी ने भी कहा है :
जब भगवान शिव ने कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा ली थी, तब उन्होंने ये सवाल पूछा था कि पाप और पुण्य की परिभाषा क्या है? तो भगवान गणेश ने कहा, पिताश्री परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं और बिना वजह किसी को दुख देने से बड़ा कोई पाप नहीं। जिन बातों को लेकर आगे बढ़ते है उनमें महत्त्वपूर्ण बात एक ही है वो हमारे अंदर का नीर-क्षीर विवेक और हमारी समझ...अगर हमारे अंदर नीर-क्षीर विवेक है तो समाज को दो कदम आगे बढ़ाने की क्षमता रखती है या सकारात्मक जोड़ने की क्षमता रखती है। यही असली मूल है।
जिस दिन हमारी समझ विकसित होती है उस दिन सारे वेद-शास्त्र, महाभारत, रामायण सब नीचे गिर जाते हैं। आप उस वक्त बहुत कीमती आदमी बन जाते हैं, क्योंकि जिसने वेद, रामायण सारी चीजें लिखीं, अनुभव से गुजरी हुई बातों को आपके सामने रखा, वो ना तो आपका ज्ञान है ना आपके अनुभव से गुजरा है। आपका ज्ञान वही है जो आपके अनुभव से गुजरा है। जिसे आपने महसूस किया है।
जब जलती लालटेन को बच्चा छू लेता है तब उसका ज्ञान बनता है, कि जलती लालटेन को या जलते दिये को नहीं पकड़ना चाहिए। ज्ञान को समझने के लिए, जानने के लिए हर चीज को आजमा के देखना जरूरी नहीं है। इसलिए जब यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न पूछा, आकाश से बड़ा क्या है तो उन्होंने कहा पिता, पृथ्वी से बड़ी क्या है तो कहा मां, तीसरा सवाल पूछा-रास्ता क्या है तो उन्होंने कहा- रास्ता वही है जिस पर महापुरुष चलें। हमारे जीवन में कहने और करने के लिए हजार बातें हैं लेकिन मुझे लगता है कि उन बातों में से केवल एक बात हम अपने जीवन में, अपने समाज को सुंदर बनाने के लिए कह सकते हैं। स्वयं को सुंदर बनाने के लिए कहा जाता सकता है। कहा जाता है कि दीया का पता पूछते मत रहो, खुद दीया बन कर अंधेरे में जलने लगो। तो जब हम अपने को बदलते हैं तभी असली बदलाव शुरु होता है लेकिन अक्सर हम चाहते है कि पहले सामने वाला बदले, भगत सिंह सामने वाले के घर में पैदा हो। मेरा बेटा तो एक अच्छे करियर के लिए पैदा हुआ है।
आज भारत देश जिस तरीके से पूरी दुनिया में एक बहुत ही प्रासंगिक देश बना है, उसके पीछे सिर्फ एक ही कारण है, जो हमारे देश के लाल या हमारे देश के लोग दुनिया के 200 देशों में जाकर के वहां के लोगों की तुलना में दिन और रात मेहनत करते हैं और अपनी मेहनत से जो उन्होंने जगह बनाई है, जिसे हम अंग्रेजी में इंडियन डायस्पोरा कहते हैं। भारत को जो इज्जत दिलाई है इससे पहले भारत की जो इज्जत है वो उन महापुरुषों से है। जैसे पूरा एशिया महाद्वीप भारत के चरणों में झुकता है तो महात्मा बुध्द के कारण। अगर पूरी दुनिया भारत को जानने के लिए आती है समझने के लिए आती है तो भगवान श्री कृष्ण के कारण। इस्कान दुनिया के 180 देशों में है तो भगवान श्री कृष्ण के कारण।
इकबाल अलामा ने एक बात कही थी, हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा दुश्मन दौरे जहां हमारा। 3000 सालों तक आक्रमण झेलते हुए इस देश ने अपनी हस्ती तो बनाई लेकिन इतना जरूर है कि हमारी हस्ती को बहुत हद तक मिटा दिया गया। हमारी वह हस्ती फिर से धीरे-धीरे वापस लौट रही है। उसके पीछे हमारे देश के लोगों के बीच की जो सहन शक्ति है। आचार्य चाणक्य ने बार-बार कहा कि भारत इतना शक्तिशाली देश है लेकिन भारत किसी भी देश पर आक्रमण करने नहीं गया। लेकिन भारत देश ने एक बहुत बड़ी भूल की, भूल थी कि हमें इतना सबल और मजबूत हमेशा बने रहना चाहिए। हमारी एकता हमेशा इतनी मजबूत रहनी चाहिए थी कि 3000 साल तक हजारों आक्रान्ताओ हमारे देश पर आक्रमण न कर पाते लेकिन हमारी आपसी फूट के चलते तमाम आक्रान्ताओं ने इस सोने की चिड़ियां को लूटा, इसके अस्तित्व को तहस-नहस कर दिया।
भारत आज अपने आजादी का अमृत महोत्व मना रहा है। 75 सालों में भारत ने जो दूरी तय की है वो बहुत ही असाधारण है। लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा पड़ोसी चीन 1986 में भारत और चीन की जीडीपी वन ट्रिलियन डालर के बराबर थी। कहीं न कहीं उस देश के लोग ही उस देश को महान बनते हैं। आज चीन की इकोनॉमी 15 ट्रिलियन डॉलर है, हम 5 ट्रिलियन डॉलर के लिए संघर्ष कर रहे है। लेकिन भारत जिस तेजी से छलांग लगा रहा है, अगले दस सालों में भारत 10 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की इकोनॉमी होगी। आर्थिक विशेषज्ञ बताते है कि साल 2040 के बाद भारत की इकोनामी दुनिया की तीन बड़ी इकोनॉमी में रहेगी।
चीन के सामने सबसे बड़ा संकट ये है कि वहां की आबादी लगभग पूरी तरह से वृध्द हो चुकी है।युवाओं का अभाव है। भारत के लिए लाभ है कि आबादी का 35 प्रतिशत हिस्सा युवा है। उनके अंदर क्षमता है कि वे एक नया अध्याय लिख सकता है। अवसर सामने है। जैसे पिता के कंधो पर बच्चा बैठ कर देखता है, वही कुछ खास करता है। ठीक उसी तरह भारत का परिचय भारत देश के युवाओं से निर्धारित होने वाला है। ये भारत के लिए गौरव की विषय है।
1997 में जब मैं ग्रेजुएशन फर्स्ट ईयर में था तो मैं याद करता हूं उन दिनों को तो मुझे लगता है कि मेरी किसी से कोई शिकायत क्यों नहीं हुई, मेरा कभी किसी से कोई विवाद क्यों नहीं हुआ। मेरा कभी किसी से बहस क्यों नहीं हुई। मैं ये पाता हूं कि शायद मैं अपने काम लेकर इतना मशगुल रहता था कि किसी पार्टी में नहीं जा पाता था। स्टार न्यूज के जमाने के दोस्त-लोग रियूनियन मैं कभी किसी अपने साथ के घर खाना-खाने रियूनियन में कभी नहीं गया। मेरे पास वक्त ही नहीं होता था। मैंने अपने पूरे स्टार न्यूज़ के कार्यकाल में नाइट शिफ्ट किया। यहां सईद अंसारी बैठे हुए हैं, हम लोग रूम पाटर्नर थे। मैं दफ्तर में ही सो जाता था। नाइट शिफ्ट करता था, दफ्तर में सोता था। और सुबह जग कर के 10 बजे मैं किसी न किसी दफ्तर में खबरों की तलाश कर रहा होता था।मेरे पास वक्त बिलकुल नहीं होता था। कहने का मतलब ये है वे लोग जो सही अर्थो में अपने को समर्पित नहीं करते उनके जीवन में शिकायते बहुत रहती हैं।
कहा जाता है कि परिवार से बड़ा गांव होता है और गांव से बड़ा राज्य होता है और उससे बड़ा देश होता है। हम सब इस देश के वासी है। इस समय जरूरत है, हमारी जितनी क्षमता है, हम हाथ बढ़ाएं। अभाव से भरे लोगों के लिए जो निर्बल हैं, दुर्बल हैं, उनके ऊपर उठाने के लिए। यहां माताएं और बहने हैं। मैं कहीं मास कम्यूनिकेशन ओरिएंटेशन प्रोग्राम अवार्ड में ट्रेनिंग देने गया था। मैंने वहां एक बात कही, भारत में महिलाओं के लिए कानून बनाने की जरूरत है। जिस देश में महिलाएं निर्बल है वहां के लोग अप्रतिम ऊंचाईयों को नहीं छु सकते क्योंकि हमारा अस्तित्व ही हमारी माताओं के कारण है। अगर मां दीन रहेगी तो बेटा कभी शक्तिशाली नहीं हो सकता है।क्योंकि उसका पूरा अस्तित्व लकवाग्रस्त रहेगा इसलिए जरूरी है कि जब वेदों के किसी काल में औरतों की सत्ता थी, औरतों से समाज निर्धारित होता था। आज भी हमारे समाज में मां की पूजा होती है। मां भगवती की, मां दुर्गा व मां काली, ये सभी प्रतीक हैं। हमने औरतों को इज्जत दी, लेकिन आज नहीं दे पा रहे हैं।आज हमें संकल्प लेना चाहिए कि हमें सबल- मजबूत और ताकतवर होना चाहते हैं तो हमें अपनी माताओं और बहनों को ताकतवर बनना है क्योंकि उनके अस्तित्व से हमारा अस्तित्व है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित महेश पराशर जी कर रहे है कार्यक्रम के संयोजक रामनरेश पराशर जी, हरीश जी है, विशाल मुदगल आप सभी लोगों ने एक मामले में एक अच्छा काम किया है। जब कोई भी चर्चा होती है किसी भी सभा में कोई एक आदमी एक अच्छी बात लेकर जाता है तो एक आदमी का रूपांतरण, पूरे समाज का रूपांतरण कर सकता है क्योंकि क्रांति व्यक्ति में घटता है। समाज में नहीं। जब क्रांति गांधी में घटी तो लोगों ने फॉलो किया। भगत सिंह में घटी तो लोगों ने फॉलो किया, सुभाष चन्द्र ने किया तो लोगों ने फॉलो किया। जब आध्यात्मिक क्रांति बुद्ध, महावीर, मीरा, रैदास, दादू, कबीर में घटी तो हमारा पूरा समाज आंदोलित हुआ और लोगों ने फॉलो किया।
लोग कहते हैं कि पहले का समाज बहुत अच्छा था, आज का समय अच्छा नहीं है। मैं हमेशा कहता हूं कि पहले का समाज से आज का समाज बहुत बेहतर है, क्योंकि आज हम जिस तरह मेडिकेटेड दुनिया में पैदा हुए हैं और पैदा होने के दिन तक चिकित्सकीय व्यवस्था की पूर्ण देखरेख में होता है। आज वो सब कुछ है जो हम कल्पनाओं में सोचते थे। अभाव ग्रस्त होने के कारण जब देश आजाद हुआ तो हमारे आबादी को खाने का अन्न नहीं था। आज हमारे अन्न भंडारों में इतना अन्न है कि कोविड के वक्त में भारत ने आपदा से ग्रस्त अनेक देशों को मुफ्त अनाज भेज कर खिलाया है। ये भारत की ताकत है, कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता, जब तक उसके अंदर त्याग की भावना न हो। त्याग की भावना किसी एक व्यक्ति के त्याग की भावना से नहीं बनती, समाज में जब कोई गांधी खड़ा हो, महावीर, बुद्ध तो हम समर्पण कर के। अगर भगवान परशुराम को अपना आदर्श मानते हैं तो उनका एक गुण जरूर अमल करें। समाज रचना के लिए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए, अताताईयों से लड़ने के लिए। जिस तरीके से भगवान परशुराम ने एक योद्धा के रूप में खुद को स्थापित किया, वैसा दूसरा योद्धा इस पृथ्वी पर नहीं पैदा हुआ। हमारे सामने सुक्ष्म रूप से बहुत सारी स्थितियां हैं जो अपने परिवार और समाज में औरते है, मां और बहन के रूप में तो उनके लिए आवाज उठाने के साथ खड़ा भी होना चाहिए ये हमारा नैतिक धर्म है।