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प्रश्न - आप राम मंदिर के प्रांगण में मौजूद थे.. प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चल रहा था, इस दौरान आप के मन में क्या विचार आया?

उत्तर - जो मुठ्ठी भर लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में असहिष्णुता पैदा हो गई है, हमको खतरा दिख रहा है। मैं पूछता हूं कि 140 करोड़ की आबादी में 118 करोड़ आबादी हिंदू है, अगर वो पल भर के लिए भी उबाल मार जाए तो खतरा कितना बड़ा हो जाएगा। 500 सौ साल लग गए इस मसले को लड़ते हुए हिंदुओं को। ऐसे देश में असहिष्णुता कैसे हो सकती है? ये वो देश है जहां आचार्य चाणक्य चिल्ला-चिल्ला कह कहते रहे कि हम किसी पर आक्रमण नहीं करते लेकिन हम अपनी सीमाओं को थोड़ा मजबूत तो करें। हिंदुस्थान के सारे राजाओं-सूबेदारों को जगा-जगा कर कहते रहे लेकिन कोई नहीं जागा और आक्रांता 3000 हजार साल तक इस देश को लूटते रहे। आक्रांता आए और भारत की सीमाओं को तोड़ते हुए चले गए। उसके पहले न उसके बाद भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। ये देश विचारों में तमाम विरोध होते हुए भी गहरा सामंजस्य रखता है। रामानुजाचार्य को, आचार्य शंकर को, शंकराचार्य को, महात्मा बुद्ध के भी विचारों से को गहरी नफरत थी लेकिन महात्मा


बुद्ध की जैसी स्तुति शंकराचार्य ने लिखी वैसी स्तुति किसी ने नहीं लिखी। आप इस बात को समझने की कोशिश करिए, जहां हिंदुस्तान जैसे देश में विचारों के भेद रहते हुए भी ऋषि-मुनियों ने एक दूसरे का इतना गहरा सम्मान किया। गहरे सम्मान की परम्परा को निभाने वाला देश है ये। असहिष्णुता, असंवेदनशीलता और यहां कोई ऐसी जगह नहीं है। आज ये बात मैं खुल के इसलिए बोल रहा हूं कि हिंदु और मुसलमान को लेकर राम के भाग्य को तय करने का मामला 500 सौ साल चला। बड़ा शर्मनाक है। हमें अपने प्रभु को पाने में 500 सौ साल लग गए। प्रोपेगैंडा वाले के भरोसे में आकर इस के कुछ मुसलमान ये सोचते हैं कि उन्हें यहां खतरा है तो हिंदुस्थान से ज्यादा सुरक्षित देश इस धरती पर कहीं नहीं है।

प्रश्न - प्रोपेगेंडा चलाया गया कि भारत असुरक्षित हो गया है। अल्पसंख्यक खतरे में हैं। संविधान खतरे में है।एक तरह का नरेटिव गढ़ा गया। लेकिन मैं वापस अयोध्या पर लौटूंगी, आप भीतर गए आपने प्रधानमंत्री जी सहित तमाम साधु-संत, देश में जो बड़े नाम है वो भी वहां पर मौजूद थे। कई भावुक तस्वीरें हमने टीवी पर देखीं। आप ने तो उन्हें अपनी आखों से देखा। कुछ ऐसी भावुक तस्वीरों के बारे में आप बताना चाहेंगे।

उत्तर - देखिए, भावुक वहां हर आदमी था, मैंने तो ऐसे गंभीर लोगों को देखा जिस तरह से उनके शरीर में हरकत थी, जिस तरह से वो तालियां बजा रहे थे। वो खुश थे, उन तमाम लोगों को मैंने कभी उस तरह से मुस्कराते नहीं देखा। आपाधापी में उसमें अपने लोगों के बीच में जिस तरह से वे बड़े-बड़े कम्पनियों को चलाते हैं। बड़े-बड़े इंटरप्राइजेज के मालिक हैं। गंभीर रहते हैं, वे सारे लोग जिस तरीके से वहां पर खुश थे। प्राण-प्रतिष्ठा की पूजा हो रही थी, उसको देख रहे थे। चूंकि मंदिर के प्रांगण में आठ हजार लोग नहीं समा सकते थे। 7500 लोग अंदर थे। बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगाई गईं थी, हम लोगों के आंखों के सामने सब चीजें पानी की तरफ साफ-साफ दिख रही थीं। प्रधानमंत्री जी भी आंखों के सामने दिख रहे थे, सारे गणमान्य अतिथि दिख रहे थे, सारे धर्मगुरु दिख रहे थे, सारे कारपोरेट्स के लोग दिख रहे थे, न्यापालिका के दिख रहे थे। सबके अंदर एक अलग तरीके का भाव देखने को मिला। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ने जो कहा कि एक नया कालखंड आज से शुरु हुआ। भारत के विश्व गुरु बनने की फिर से नई यात्रा का जो कट आफ डेट है वो खत्म हुआ और नई तिथि शुरु हुई। ये बहुत ही महत्वपूर्ण है। कह सकते हैं कि भारतीय आस्था के प्रतिक राम आज अपने घर लौटे हैं तो हम सबकी दिवाली भी है।

प्रश्न - दिवाली भी है, दिपोत्सव भी मनाया जा रहा है और ये प्राण-प्रतिष्ठा का महोत्सव है।

उत्तर - प्रधानमंत्री जी ने दो बड़ी बातें कहीं, जिन्होंने मुझे बहुत टच किया। एक तो प्रधानमंत्री जी ने कहा कि राम आग नहीं राम ऊर्जा हैं और राम विवाद नहीं समाधान हैं। राम ऊर्जा इसलिए है कि राम ने ऊर्जा देने का ही काम किया है अपने पूरे जीवन। अभी आपके सहयोगी सुमित हमसे पूछ रहे थे कि मेरे जीवन में राम क्या हैं? मैं राम को किस तरह से देखता हूं? पूरे रामायण में कहानी जो प्रसंग मेरे मन को बहुत छूता है, आंखों में आंसू आ जाते हैं। जब राम अपने पिता के शरीर त्यागने के बाद उनसे आदेश लेकर वन के लिए निकले, साथ ही भरत को सूचना मिली और भरत अपने ननिहाल से शत्रुघ्न के साथ भागते हुए आए, तो माता कैकेयी को भी तब तक ये एहसास हो गया था कि मैंने ये क्या अनर्थ कर दिया। मेरा सबसे प्यारा बेटा राम तो चला ही गया, मैं विधवा हो गई। मेरे दोनों बेटे जंगल चले गए। तीनों माताएं, दोनों भाई (भरत, शत्रुघ्न), सारे गुरु,उनके ससुर राजा जनक (विदेह), उनकी सासु मां, पूरी अयोध्या सारे सखा चित्रकूट पहुंचे और सब ने अनुनय-विनय किया...जो हो गया बहुत अनर्थ हुआ है। लेकिन अब चलिए, सब लोग कह रहे हैं । यहां तक कि कैकेयी ने बिलख-बिलख के कहा। राम सबकी बात सुनते रहे, उन्होंने सिर्फ एक वाक्य बोला-

बात मेरे और पिता के बीच थी, अब पिता तो रहे नहीं और अगर पिता होते वो कहते तो मैं जरूर चलता। अब राम चौदह वर्ष बाद अयोध्या लौटेगा। मेरे लिए राम वचन के पालन करने वाले राम। रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए।अपने रघुकुल की मर्यादा को अक्षुण्ण रखने वाले राम, सबसे मर्यादित पुत्र राम, सबसे मर्यादित भाई राम, सबसे मर्यादित पति राम, सबसे बड़े योद्धा राम और सबसे बड़े प्रजा पालक राम और ऊपर से जब लवकुश जैसे उनके पुत्र हुए और लवकुश से लड़ाई हुई पूरे अयोध्या की। अंत में राम को लगा कि ये दो तेजस्वी बालक कौन हैं जो मेरी पूरी सेना को मेरे भाईयों को, सबको परास्त कर दिए, हनुमान को भी परास्त कर दिया। उस वक्त जो राम, राम नहीं होते तो राम को भी क्रोध जरूर आया होता लेकिन राम को उस वक्त क्रोध नहीं आया। उन्होंने और गहराई में जाकर पता करने की कोशिश की, पता चला की मेरे बेटे ही है। एक उत्तम पिता भी राम हुए। राम को लेकर जो बातें कही गई हैं वो छेड़-छाड़ की प्रतीक हैं। कुछ बातें कहीं जाती हैं कि उन्होनें माता सीता को वन भेज दिया, ये सब बातें इतिहास में अलग-अलग मत के लोगों ने लिखा। उस पर मैं आज बिल्कुल बात नहीं करना चाहूंगा।

प्रश्न- आप ने जिक्र किया आदर्श पुत्र का, आदर्श पिता का, राम आज धार्मिक प्रतीक नहीं है राम एक जीवन जीने की कला दिखाने वाले आदर्श पुरुष है।

उत्तर - देखिए क्या होता है कि जब बच्चा पैदा होता है (कुमार विश्वास जी बोल रहे थे) कि उसके कान में पहला शब्द बोला जाता है राम, ये दो अक्षरों का राम बड़ा मोक्ष दायिनी है। इतना ताकतवर है कि भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान जो खुद ही बहुत शक्तिशाली थे। सारे देवता उनके आगे नतमस्तक थे, जब वो सीता माता को ढूंढ़ने गए तो उन्होंने अपना परिचय सिर्फ इतना ही दिया कि मैं रामदूत हनुमान हूं। राम में इतनी महिमा, इतना पुरुषार्थ, इतना तेज, इतनी ताकत की अजर-अमर चिरंजीवी हनुमान जैसे व्यक्ति ने भी उनको भगवान माना।

प्रश्न- राम राज्य की बात की जा रही है। राम राज्य जिसका जिक्र मोहन भागवत जी ने भी किया। राम का शासन काल आदर्शो और मूल्यों पर टिका हुआ है। भारत के लिए राम राज्य कैसा होगा चाहिए आप की नजर में ?

उत्तर - देखिए, राम ने जो नियम स्थापित किए, वो रामराज्य था। रामायण में चोरों, डाकूओं का भी जिक्र है। महर्षि बाल्मिकी खुद एक डाकू थे। समाज में जो तमाम कुरीतियां है वो कुरीतियां तब भी रही होंगी। जब विश्वामित्र जी राम को ले जा रहे थे तो राम ने पूछा गुरुदेव ये पहाड़ जैसा दिख रहा है ? विश्वामित्र जी ने कहा राम ये मेरे जैसे करोड़ो ऋषियों को राक्षसों ने मार डाला है, उनके अस्थि-पंजर हैं ये। उस वक्त भी कितना दुर्दांत माहौल रहा होगा। राजा दशरथ ने कहा कि चौदह साल के सुकुमार बालकों को क्यों लेके जा रहे हो आप? मुझे ले चलिए मैं लड़ लूंगा, आप तो खुद ही जीते जी त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने वाले महर्षि हैं। आपको ये बालक क्यों चाहिए, उन्होंने कहा, दशरथ अब मैं वृद्ध हो चुका हूं। अब मैं विचारों में जीता हूं और वृद्ध आदमी के अंदर धीरे-धीरे लड़ने की जो क्षमता होनी चाहिए वो समाप्त हो जाती है। इसलिए राम और लक्ष्मण को मैं ले जा रहा हूं। शस्त्र-अस्त्र की जितनी साधना मैंने की है वो विधा के रूप में इन्हें दूंगा। यही वह समय है इनके लिए यही नियति परमात्मा ने तय की। उसके बाद इनको लड़ने के लिए भेजूंगा तब राजा दशरथ जा करके तैयार हुए। दर्जनों बार रामायण देख चुका हूं। कृष्णा देखता हूं, बी.आर.चोपड़ा जी की बनाई महाभारत देखता हूं। चन्द्र प्रकाश द्विवेदी जी मेरे बड़े भाई की तरह हैं, उनके द्वारा बनाया गया चाणक्य धारावाहिक देखता हूं। साल में एक बार मैं सभी देखता हूं। देखने के बाद जो ऊर्जा मिलती है, जागृति मिलती है वो कमाल की मिलती है। मुझे उम्मीद है कि जो दर्शक हैं हमारे उनको भी देखना चाहिए। क्योंकि सिखने की कोई उम्र नहीं होती है। हर उस जगह से सिखना चाहिए, उस किताब से, हर उस वाकए से जिसमें सीख की गुंजाइश हो।

प्रश्न- मैं आप से ये भी जानना चाहती हूं कि क्या आपने रामलला को देख कर मन में क्या भाव आया, क्योंकि खुद मैं साधु-संतों से बात कर रही हूं, जो उनके रामलला हैं वो घुटनों के बल चलते हैं। अब जो रामलला है ये पांच वर्ष के हैं और चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट है। जब आप ने एक श्रद्धालु के तौर पर रामलला को देखते है तो मन में किस तरह के विचार आए।

उत्तर - देखिए एक बड़ी अनूठी बात आप से कहने जा रहा हूं। सही में जो महापुरुष होते हैं उनका जो चित्त होता है। पतित-पावन, निर्मल-कोमल बच्चे की तरह ही होता है। कहते हैं कि संत जब संतत्व को प्राप्त करता है तो वह पुन: बच्चा हो जाता है। बच्चा होने से प्रतीक (चिन्ह, आकृती) को ले रहा हूं। बच्चा होने का मतलब जिसके इसके अंदर कोई वैमनस्यता नहीं रहती, कोई शत्रुता नहीं रहती, कोई नफरत नहीं रहता। बच्चा ऐसे की कोरा कागज है, उस पर आप जो लिखना चाहें लिख लें। बच्चा मतलब क्या दर्पण सामने जैसे खड़े हो जाओ वही प्रतिमा छप जाती है। जैसे कुएं मे बाल्टी डालते हैं पानी ले कर आती है। क्योंकि कुएं में पानी है, बाल्टी में पानी नहीं है। ठीक उसी तरह आज के वक्त में कोई हमें गाली देकर चला जाता है, कोई हमारी तरफ घूर के चला जाता है। हम तुरंत रिएक्शन आ जाते हैं क्यों? क्योंकि उसके उस एक्शन ने बाल्टी का काम किया। वो तो एक चीज फेंक गया लेकिन हमारे अंदर पहले से ही नफरत गुस्सा, क्रोध से भरा हुआ है। सद्पुरुषों और महापुरुषों के अंदर ये नहीं होता। वो चित्त से बच्चे ही होते हैं। रामलला की पांच साल की मूर्ती होती या तीन साल की होती या खड़े रामलला होते उनके अंदर वही कोमल सुरत, मोहनी मुरत और कंधे में लटका धनुष और हाथ में बाण ये बताता है कि मेरी मोहनी मुरत सांवली सूरत पर जाते हो तो तुम्हें परमात्मा में बच्चें की तरह मिलूंगा लेकिन अगर विपरीत करते हो तो कंधे में लटका हुआ धनुष और हाथ में बाड़ रावण की गर्दन काटने के लिए भी काफी है।

प्रश्न- राम आप के लिए कौन है सखा,भाई है मेरे लिए राम राजा है राम है आप उनको किस रूप में देखते हैं ?

उत्तर - राम मेरे जीवन में होते तो मैं भरत बन जाता वे मेरे बड़े भाई होते। और कृष्ण अगर आज भी मिलते तो उनके कंधे पर सवार हो जाउंगा, चलो माखन खिला कर लाओ। कृष्ण से दोस्ती की जा सकती है। कृष्ण दोस्तों के दोस्त है, सखाओं के सखा हैं। मर्यादा के रूप में राजा है मर्यादा पुत्र हैं, मर्यादा के रूप में पिता है, मर्यादा के रुप में जो सोच लीजिए। सारे रिश्ते मर्यादा के प्रतिमान हैं राम।

प्रश्न - प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान श्रीराम आग नहीं ऊर्जा पैदा करते हैं। भगवान श्री राम विवाद नहीं समाधान हैं। आपको लगता है कि अब कम से कम जो सनातनी हैं, वो एक दिशा में एकजुट हो कर चल पड़े हैं इस मंदिर के बाहर।

उत्तर- देखिए जब पड़ोसी से झगड़ा होता है तो परिवार एक हो जाता है, जब दूसरे गांव से झगड़ा होता है तो पूरा गांव एक हो जाता है और जब संस्कृति या सभ्यता से झगड़ा होता है तो एक सभ्यता एक साथ खड़ी हो जाती है। वो देखने को तो मिला लेकिन जो लोग ये कहते हैं कि राम यहां पैदा नहीं हुए थे, मैं बहुत भरोसे से कहता हूं कि ऐसे लोगों को इतिहास का ज्ञान नहीं है। सामान्य तौर पर हर भारतवासी वो हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिख हो, ईसाई हो, यहूदी हो, जो भी हो सबने इतना इतिहास पढ़ा है कि उन्हें ये पता है कि राजा दशरथ के पुत्र राम अयोध्या में पैदा हुए थे। हिन्दू के लिए साक्षात भगवान को रूप में पैदा हुए थे। सारा हिन्दू संसार उनको भगवान मानता है, भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में पैदा हुए। सबसे प्राचीन नगरी पूरे विश्व की काशी है, जिसको शिव अपनी त्रिशूल पर धारण करते हैं। जहां अविरल गंगा भगवान शिव की जटाओं से निकल कर गंगोत्री से आकर काशी में विश्राम करती है। हमारे मिथकों की बातें जो हमारे गहरे विश्वास से जुड़ी हुईं हैं, उसको तो हम सब जानते-समझते हैं। कुमार विश्वास जी का इंटरव्यू कर रहा था, इस दौरान एक बहुत अच्छी बात उन्होंने कही-ऐसे करोड़ों हिन्दू हैं जो मंदिर नहीं जाते, ऐसे करोड़ो लोग जो कर्मकांड नहीं करते, मैं भी कर्मकांड पूजा नहीं करता। लेकिन ईश्वर पर मेरा गहरा विश्वास है, मैं गहरा ईश्वरवादी हूं। महात्मा बुद्ध के बारे में कहा जाता है कि वो कर्मकांड नहीं करते थे। उनसे किसी ऋषि ने पूछा कि आप क्यों नहीं करते? उन्होंने कहा कि मैं इसलिए नहीं करता कि मैंने अपने पूरे जीवन यात्रा में देखा कि पूजा-पाठ कर्मकांड करके क्या मांगता? ऐसी चीज मांगता है जिसको नियमानुसार भगवान भी नहीं दे सकते, उसको देने में दुविधा ही होगी। हम ऐसी ही चीजे मांगते हैं कर्मकांड के जरिए। वो एक अलग विषय है लेकिन जो आज दृश्य आखों के सामने पूरी दुनियां के सामने टेलिविजन के जरिए, डिजिटल मीडिया के जरिए और भी प्रसार माध्यमों के जरिए जो लोगों के देखने सुनने समझने को मिला। हिन्दू भावना की आस्था की शक्ति थी, एक बार पुन: स्थापित हुई है। इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को न्यायपालिका को, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ जी को, श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट के लोगों को, आरएसएस के लोगों को, विश्व हिंदू के लोगों को ( जो आरएसएस की एक शाखा है ) इन तमाम लोगों को और भारत एक्सप्रेस के लोगों की तरफ से बधाई देना चाहूंगा। उन लोगों ने एक लम्बी लड़ाई के बाद और आज के दिन कल्याण सिंह जी को नहीं भूलना चाहिए, लालकृष्ण आडवाणी जी को नहीं भूलना चाहिए, मुरली मनोहर जोशी जी को नहीं भूलना चाहिए और अटल बिहारी वाजपेयी जी को नहीं भूलना चाहिए। जिन लोगों ने अपना पूरा जीवन इस संघर्ष, इस लड़ाई को दिया। भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण हिन्दू जनमानस के आस्था के सबसे ऊंचे प्रतिमान हैं, ऊंचे शिखर हैं। उसके साथ अगर छेड़छाड़ करता है, उसके बावजूद भी हिन्दू ने छाती पर गोली खा करके अपना बलिदान दे करके, इस बात को स्थापित करते हुए अपना पूरा जीवन अपना पूरा समय दिया तो ये भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का ही एक अनोखा उदाहरण है।

प्रश्न - प्रधानमंत्री ने न्यायपालिका को भी धन्यवाद कहा। न्याय के पर्याय भगवान श्री राम को लेकर जो समाधान निकला वो भी न्यायबद्ध आया। आपको लगता है कि इसके बाद काशी और मथुरा में भी यही न्याय होगा।

उत्तर - देखिए जो इतिहास है वो अटल है सत्य है। अब बड़ी गहरी बात है कि कोई आक्रांता बाहर से आया, आचार्य चाणक्य इस बात को कहते थे कि हम आक्रमण नहीं करते, बहुत अच्छी बात है लेकिन हिन्दुस्थान के सारे राजाओं, सूबेदारों, सेनापतियों को एक होके रहना चाहिए ताकि हमारे दरवाजे तोड़ कर हमारी सीमा तोड़ कर के कोई अंदर न आ जाए। लेकिन शायद ये सद्बुद्धि उस वक्त आचार्य चाणक्य के तमाम प्रयासों के बावजूद भी लोगों के अंदर नहीं आई और आक्रांता आते रहे और भारत को लुट कर जाते रहे। अब कोई एक राजा आया, कोई एक आक्रांता बाहर से आया उसने लूटने के बाद सम्राज्य को स्थापित किया और अपने प्रतीकों को यहां स्थापित करना शुरु किया। उसमें अगर कुछ शताब्दियां लग गई और लोगों कि स्मृति पर धूल पड़ गई तो उस धूल को सही मान कर के सही नहीं ठहराया जा सकता। उस धूल को साफ करने की जररूत है। आज पांच शताब्दी बाद उस धूल को साफ करके न्यायबद्ध तरीके से भगवान श्री राम की स्थापना हुई अच्छी बात है। मैं हमेशा चाहूंगा कि भारत की जो तहजीब है, जो एक अदा है जो जीने की कला, वो भारतवासी उसको समझता है। उसको वहन करता है, उसको धारण करता है, उसको लेकर चलता है। राम मंदिर की आज प्राण-प्रतिष्ठा हुई है, वो हम सबके हर्ष का विषय है, स्वागत होना चाहिए खुले मन से। आज दिवाली देश मना रहा है पहली बार ऐसा है कि दिवाली के बाद दिवाली मनाई जा रही है।

प्रश्न - प्रधानमंत्री ने न्यायपालिका को भी धन्यवाद कहा। न्याय के पर्याय भगवान श्री राम को लेकर जो समाधान निकला वो भी न्यायबद्ध आया। आपको लगता है कि इसके बाद काशी और मथुरा में भी यही न्याय होगा।

उत्तर - देखिए जो इतिहास है वो अटल है सत्य है। अब बड़ी गहरी बात है कि कोई आक्रांता बाहर से आया, आचार्य चाणक्य इस बात को कहते थे कि हम आक्रमण नहीं करते, बहुत अच्छी बात है लेकिन हिन्दुस्थान के सारे राजाओं, सूबेदारों, सेनापतियों को एक होके रहना चाहिए ताकि हमारे दरवाजे तोड़ कर हमारी सीमा तोड़ कर के कोई अंदर न आ जाए। लेकिन शायद ये सद्बुद्धि उस वक्त आचार्य चाणक्य के तमाम प्रयासों के बावजूद भी लोगों के अंदर नहीं आई और आक्रांता आते रहे और भारत को लुट कर जाते रहे। अब कोई एक राजा आया, कोई एक आक्रांता बाहर से आया उसने लूटने के बाद सम्राज्य को स्थापित किया और अपने प्रतीकों को यहां स्थापित करना शुरु किया। उसमें अगर कुछ शताब्दियां लग गई और लोगों कि स्मृति पर धूल पड़ गई तो उस धूल को सही मान कर के सही नहीं ठहराया जा सकता। उस धूल को साफ करने की जररूत है। आज पांच शताब्दी बाद उस धूल को साफ करके न्यायबद्ध तरीके से भगवान श्री राम की स्थापना हुई अच्छी बात है। मैं हमेशा चाहूंगा कि भारत की जो तहजीब है, जो एक अदा है जो जीने की कला, वो भारतवासी उसको समझता है। उसको वहन करता है, उसको धारण करता है, उसको लेकर चलता है। राम मंदिर की आज प्राण-प्रतिष्ठा हुई है, वो हम सबके हर्ष का विषय है, स्वागत होना चाहिए खुले मन से। आज दिवाली देश मना रहा है पहली बार ऐसा है कि दिवाली के बाद दिवाली मनाई जा रही है।

प्रश्न - बतौर पत्रकार ये तो हम उत्सव देख रहे हैं। पत्रकार होने के कारण बहुत करीब से देखा समझा है। बहुत लोगों से आपने बातचीत की होगी। कुछ याद हो तो बताएं।

उत्तर - जब मैंने पत्रकारिता शुरु किया था 1997 में तब से लेकर अब तक 26 साल हो गए। 1992 में कार सेवा शुरु हुई थी तब हमारे शेरपुर कलां (गाजीपुर) से हजारों लोग गए थे। जब संघर्ष चरम पर पहुंचा तो लोगों ने मस्जिद को गिरा दिया। हिन्दुओं को लगता था कि मस्जिद उनके अपमान का प्रतीक है और थी भी। मुझे याद है उस वक्त बहुत सारे लोग ईंटे लेकर गांव आए थे। और बहुत बड़ा जलसा हुआ था। ठीक उसी तरीके से जब हम लोग थोड़ा और बड़े हुए तो 6 दिसम्बर के दिन कानून व्यवस्था की स्थिती न बन जाए। इसके लिए हर जिले और शहर में पुलिस का अच्छा बंदोबस्त किया जाता था।अलग-अलग तरीके से अपीलें की जाती थीं। धर्म गुरुओं को बुलाया जाता था। अब जो प्रधानमंत्री जी ने कहा कि एक नया कालखंड इसके बाद से शुरु होता है। एक नया काल खण्ड इस बीच में था 500 सालों के अंतराल में और उससे पहले 7500 हजार साल पहले जब त्रेता युग था, जो एक नया काल खण्ड था। राम जब चौदह साल के लिए वनवास गए तो एक नया काल खण्ड शुरु हुआ लेकिन वह चौदह साल में समाप्त हो गया। आज का जो समय है वह आधुनिक भारत विश्वगुरु भारत बनने की जो शुरुवात है। वो तो युगों-युगों से है लेकिन बीच के समय में कुछ देश हमसे अवश्य आगे निकल गए। आज चीन हमारे पड़ोस का देश है, जिसकी इकोनॉमी करीब 19 ट्रिलियन डॉलर की है। अमेरिका की 25 ट्रिलियन डालर की है लेकिन कुछ समय पहले ब्रिटेन की इकोनॉमी हमसे बड़ी थी। फ्रांस की इकोनॉमी हमसे बड़ी थी लेकिन अब ब्रिटेन-फ्रांस से हम आगे निकल गए है। विश्व की पांचवी से चौथी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे है। हालांकि गैप है लेकिन जो आज से प्रधानमंत्रीजी ने आह्वान किया कि आज से मैं नए सिरे से आह्वान कर रहा हूं। और भी लोगों ने जो कहा मुझे लगा कि जहां गहरा भरोसा, गहरी आस्था और प्रयास शुरु हो जाता है। वहां से नव-निर्माण शुरु होता है। ये निश्चित रूप से दिवाली मनाई गई, ये दीप व्यर्थ नहीं है। ये दीप एक नई रोशनी और एक अलग फिजा का निर्माण करेगी। आने वाले दिनों में हम रुकेंगे नहीं और समृद्धि निराशा छोड़ कर हम समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ेंगे। प्रधानमंत्री ने जो कालचक्र की बात जो कही, ये सिर्फ आस्था नहीं बल्कि विरासत के साथ-साथ विकास की नई गाथा लिखने जा रहे हैं। मैंने कई बार अपने उद्बोधनों में बोला है एक समय था जब आदमी आदिवासियों की तरह रहता था, शिकार करता था, शाम होते ही छुप जाता था। वहां से लेकर जो तीन लाख साल हमारे इस रूप में खड़े होने को पूरे मानवता को मिला। हमने उच्चतम ऊंचाईयां तय की, जब हम विश्व गुरु बन गए। उसके बाद जब आक्रांता भारत आए और धीरे-धीरे भारत ने चमक खोई और यहां से तमाम चीजों को लूट के ले जाते रहे, उनमें से कुछ लोग रहना स्वीकार किया उनमें से कुछ शासक अच्छे भी निकले, उनको बुरा नहीं कहा जा सकता जिन्होनें भारत में रह के भारत जैसे जीने की कोशिश की उसमें मैं कुछ राजाओं के काम को अच्छा मनता हूं कुछ मामलों में, लेकिन उनके पूरे के पूरे मानस को पूरे के पूरे मनोविज्ञान को उनके पूरे के पूरे संस्कृति को आप सही नहीं ठहरा सकते। क्योंकि ये ऐसा देश था जहां सात्विक लोग रहते थे। एक समय था जब राम और रावण की पहचान अलग-अलग थी।राम ये है रावण ये है एक समय आया जब एक ही परिवार में कृष्ण और कंस हुए यानि कंस मामा हुए और कृष्ण भांजे हुए यानि जो शैतान था, परिवार में आ गया। उसके बाद जो है शैतान ने कलयुग में एक ही शरीर में अपना निवास बना लिया। कई बार हमारे अंदर की खुबियां निकलती है कई बार हमारे अंदर की जो शैतानी ताकतें है वो बहुत उफान मारती है। आप इसको ऐसे ही समझिए कि आज से पुन: भगवान का उदय हुआ है।इंसानी शरीर में भगवान ने अपना वर्चस्व शैतान को गिरा के प्राप्त कर लिया।

प्रश्न - भगवान श्रीराम के कई रूप हैं। पिता के तौर पर पुत्र के, राजा के तौर पर तपस्वी के, मर्यादा पुरुषोत्तम राम आपके लिए किस रूप में है ?

उत्तर - भगवान श्रीराम के एक प्रसंग का जिक्र करना चाहूंगा। जब महाराज दशरथ राम को वन जाने की आज्ञा देकर प्राण त्याग दिए। भगवान राम चित्रकुट तक पहुंचे थे और जैसे ही भरत को पता चला तो वह बहुत विह्वल गए।

भरत समेत तीनों माताएं, कैकेयी को भी बड़ा पश्चाताप हुआ कि काल ने कैसे उनके मुख से कैसे ये बात निकलवा दी। कैसे मथुरा के कहने में आ गईं। पति के जाने का शोक उनको तो था ही राम को भरत से ज्यादा मानती थीं। माता कौशल्या, माता कैकेयी और माता सुमित्रा ये तीनों उनके गुरु, विदेह जनक जिनको जीते जी संत पदवी मिली वो, पूरी अयोध्या के लोग बचपन के सारे सखा, उनके गुरु वशिष्ठ सब लोग पहुंचे। भगवान राम से मिलने कि गलती हो गई माफ करिए, अयोध्या लौट चलिए। भरत तो विलाप करते रहे, अपने बड़े भ्राता के चरणों को पकड़ कर बैठे रहे। राम सबकी सुनते रहे और पूरे घटना क्रम में सिर्फ एक वाक्य बोले- वचन हमारे और पिता के बीच था, पिता अब रहे नहीं, अब तो राम चौदह वर्ष बाद ही लौटेगा। पूरी रामायण की तमाम घटनाओं में ये कथा मेरे मन के बड़ी करीब है। मैं जब भी इसे याद करता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अगर आदमी हो जो वचन का इतना धनी हो, निभाने की उसमें ताकत हो और पुत्र के रूप में राम हर पिता का सपना होता है।

सबल स्त्री

डॉ राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि भारत विकास कैसे करेगा? आधी से ज्यादा आबादी गुलाम है। वो औरतें भी गुलाम हैं जो अपने पतियों के बिना एक कदम नहीं चल सकतीं। अगर हमारी आधी आबादी लकवाग्रस्त रहेगी, अधिकारहीन रहेगी, शक्तिहीन रहेगी तो उन्हीं के कोख से जन्मे हम सबल कैसे हो सकते है? हम भी दिन-हीन ही रहेंगे। हमारे अंदर कितनी भी ताकत और हिम्मत फूंकने की कोशिश की जाए।

फिर मैं अर्धनारीश्वर से जोड़ता हूं। हमारा आधा अस्तित्व स्त्री से मिला हुआ है और आधा अस्तित्व पुरुष से मिला हुआ है। अगर आधा शरीर लकवाग्रस्त रहेगा तो हम तेज कैसे दौड़ पाएंगे? इसलिए जरूरी है कि हमारी माताएं-बहन और बेटियां सबल रहे, मजबूत रहे। कम से कम हम अगर उनके साथ अत्याचार कर भी देते हैं तो अगले पल हमारे मन में इतनी तरलता होनी चाहिए कि हम उनसे माफी मांग ले। मैंने भी पत्नी को डांटा है। कई बार कटु वचन बोले हैं लेकिन मैंने हजार बार माफी मांगी है। इसलिए मेरा मन साफ है, इसलिए साफगोई से बोल पा रहा हूं।

अक्सर देखा गया है कि बच्चा जब पैदा होता है तो उसको बचपन से ही यह संस्कार दिया जाता है : मर्द बच्चा, लोहे का बच्चा। बचपन से ही हमें ये ट्रेनिंग दी जाती है।

आप लोगों ने पुरुष को बमुश्किल रोते हुए देखा होगा। औरतों को हम बहुत ज्यादा रोते हुए देखते हैं। औरतों में हार्ट अटैक की बीमारियां पुरुषों की तुलना में काफी कम हैं। उसके पीछे का कारण है उनका रोना। रोना भी एक दवा है, जो नहीं रोता वो घूंट-घूंट के मर जाता है। जो रोता है, उसे बा

गांव की घटना

मैं बच्चा था। जब गांव के चार-पांच लोग पुणे में आचार्य रजनीश से मिलकर आए। बात 1987 की है, पूरे गांव ने उन लोगों को निकाल दिया। गांव के लोगों का मानना था कि ये सभी भ्रष्ट होकर लौटे हैं। उस घटना में एक पास के चाचा जी भी थे, वो हमें बहुत प्यार करते थे और मुझे पसंद करते थे। मेरे मन पर बड़ा स

आचार्य रजनीश से साक्षात्कार

उस समय पहली बार मैंने आचार्य रजनीश का नाम सुना। उन्होंने दो किताबें मुझे दीं। एक 'शिक्षा में क्रांति'। ये पहली किताब मैंने पढ़ी। दूसरी किताब भी पढ़ी। उस वक्त मैं 9 साल का बच्चा था लेकिन बहुत बातें समझ नहीं आईं। मेरा बेटा अभी बारह साल का होगा, मैं उससे तुलना करता हूं तो मुझे लगता है कि अपने बेटे से काफी आगे था। 1995 में दसवीं पास कर ली, तब लाइन बाई लाइन पढ़ा, एक-एक शब्द मेरे समझ में आया। मुझे लगा की हम किस देश में रहते हैं, एक ऐसे आदमी को सेक्स गुरु कह करके समाज से निकाल दिया, जिस

मोक्ष और महापुरुष

मोक्ष ईश्वरत्व के पार का शब्द है। जैसे तमाम हमारे वेदों-पुरणो में इन्द्र को भी विष्णु के सामने याचना करते हुए सुना गया है कि प्रभु मुझे मोक्ष दे दो। और इस पृथ्वी पर जीते जी कुछ ही लोगों को मोक्ष मिला। जैसे भगवान महावीर का नाम ले सकता हूं। भगवान गौतम बुद्ध का नाम ले सकता हूं। मीरा का नाम ले सकता हूं। कबीर

भगवान बुद्ध

एक कहानी है बौद्ध धर्म में। जब बुध्द को ज्ञान प्राप्त हुआ तो बुध्द सात दिनों तक मौन में चले गए। उन्होनें कुछ बोला ही नहीं। इन्द्र देवताओं के साथ आए और उन्होने कहा कि पहली बार पृथ्वी पर आप जैसा कोई बुध्द पुरुष उतरा है, अगर आप बोलना बंद कर देगें तो मानवता का उद्धार कैसे होगा? भगवान बुध्द ने कहा किसके लिए बोलूं? जो जानते हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं, जो जनना नहीं चाहते उनको बताने का कोई फायदा नहीं। इसलिए बोलने का कोई अर्थ नहीं। देव राज इन्द्र ने कहा कि भगवान उनके लिए बोलिए जो इन दोनों के बीच में फंसे हुए हैं। थोड़ा धक्के की जरूरत है। लोग रूपांतरित हो जाएं। आप सोचिए की भगवान बुध्द भी अपने संघ में औरतों के प्रवेश पर तब तक बंदीश लगा रखी थी, जब तक उनकी मुलाकात यशोधरा से नहीं हुई।

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