सबसे पहले दीपाली जी को धन्यवाद और साथ में भारत लिटरेचर टीम को धन्यवाद,मिरांडा हाउस में छोटे भाई-बहनों को बहुत-बहुत आभार की आप लोग यहां पर बैठे हुए है सुनने के लिए। हांलाकि मैं वक्ता के रुप में बिल्कुल स्थापित नहीं हूं क्योंकि मैंने कभी भी वक्ता के रुप में अपने को स्थापित नहीं किया लेकिन हां पत्रकारिता के क्षेत्र में जो बच्चे कुछ साल पुराने है वो जरुर मुझे जानते है,क्योंकि 28 साल से काम करते हुए हो गए है।
बात अपने मुद्दे पर करते है सवाल ये उठता है कि स्त्री को ले करके अभी भी कोई संस्थान बनाने की,कोई स्कीम देने की,स्कालरशिप देने की हमें जरुरत क्यों पड़ती है।अभी भी ये विमर्श-चर्चा क्यों करते है...स्त्री का संघर्ष,उसके सपने,उसकी सफलता.शायद किसी के बारे में इसलिए की जाती है की कोई बात होती है।अगर बात न हो तो शायद बात करने की जरुरत न पड़े।यानि की बात किसके बारे में की जाती है या तो सफलतम के बारे में की जाती है या तो असफलतम के बारे में की जाती है या तो
मजबुत के बारे में की जाती है जिसके रुतबे से सब हैरान परेशान होते है या तो बात एकदम पीड़ित के बारे में की जाती है जिसके लिए दया से मन उमड़ रहा होता है।
समाज के बदलाव की दिशा में सबसे कम योगदान वो लोग देते है जो समाज के सबसे निचले पायदान पर होते है।क्योंकि समाज में उतार आए चढ़ाव आए, महगांई आए गरीबी आए व्यभिचार आए सदाचार आए इससे उनको कोई अंतर नहीं पड़ता वो इम्यून होते है।दूसरी स्थिती होती है अति अमीरो की (एक घटना है जो मैं जिक्र कर रहा हूं) फ्रांस जैसे देश के राजा लुई की पत्नी ने कहा की ब्रेड खत्म हो गया है तो केक ही बटवा दो क्या दिक्कत है(जो सिपहसालार वहां थे वो हंस पड़े) कहे महारानी ब्रेड ही नहीं है तो केक कहां से बटवा दे।तो अमीरो को अंतर नहीं पड़ता की स्थिती कैसी है और क्या है।
क्रांति वहां से पैदा होती है जहां इन दोनों के बीच में की जो स्थिती होती है हमारे आप जैसे लोगों की जो मध्यम वर्ग की,क्रांति हमेशा मध्यम वर्ग लेके आता है।
सवाल ये आता है की स्त्री के बारे में हमें चर्चा करने की जरुरत क्यों पड़ती है,इसलिए चर्चा करने की जरुरत पड़ती है क्योंकि स्त्री का स्वभाव ऐसा है कि अपना वो सर्वस्व दे देती है जिसको देती है।जब स्त्री प्रेम करती है तो गुणा-गणित से प्रेम नहीं करती वो समर्पण भाव से प्रेम करती है और पुरुष गुणा-गणित से प्रेम करता है पुरुष प्रेम करते वक्त भी कुछ पाना चाहता है स्त्री प्रेम करते वक्त कुछ खो देना चाहती है।ये जो खो देने का उसका जो जुनून है ये पुरुष को ताकतवर बना देता है और उसको हारा हुआ महसूस करा देता है।और मैं मानता हूं की स्त्रियों के साथ पुरुषों ने बड़ा गहरा छल किया,और छल इसलिए किया जिस स्त्री से पुरुष का जन्म हुआ आज पूरी दुनिया में विमर्श है ऐसा नहीं की अमेरिका में स्थिती बहुत अच्छी हो गई,अमेरिका में कभी भारत से ज्यादा खराब स्थिती थी,यूरोप की और बद से बद्तर स्थिती थी।लेकिन अमेरिका में यूरोप में भारत के बाद औरतों को वोट देने का अधिकार मिला हमारे यहां पहले मिला,वैसे तो विश्व गुरु होने का दम भरते है चेला बराबर हमारी औकात नहीं है बड़ी साफ बात बता रहा हूं।क्योंकि जहां दुनिया में विश्व गुरु के बनने के जो पैमाने है उसमें कभी रहा होगा भारत वो आज नहीं है हमारे महापुरुषों ने ऐसा प्रयास किया।
यहां तक भी महात्मा बुध्द जैसे तेजस्वी व्यक्ति को भी स्त्रियों को संघ में लेने में बड़ी दुविधा रही उन्होंने यहां तक कह दिया की संघ पांच सौ से ज्यादा नहीं चल पाएगा।
आदिशंकर ने स्त्रियों के बारे में अच्छे श्लोक लिखे,मनु ने स्त्रियों को नरक का खान लिखे लेकिन मनु ने ये भी लिखा 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' तो बड़ी दुविधा रही है हमारे पूरे मानस में और मनीषियों के मानस में भी और जब हम बच्चे थे तो हमारे मानस में भी बड़ा दुविधा बना के रखा,तो एक द्वंद पैदा हुआ कि हमें किन-किन चीजों से मुक्त होना है उसमें संसार से मुक्त होना है,संसार माया है,रुपया-पैसा माया है,वासना माया है भारतीय वांग्मय में वासना के देवता कामदेव को रखा गया है और काम कहां से पैदा होता है तो काम तो पुरुष से पैदा होता है काम स्त्री से भी पैदा होता है।और हमारे अंदर लालच भी है लेकिन लालच का तो कोई देवता नहीं है हमारे वांग्मय में,क्रोध है उसका भी कोई देवता नहीं है क्रोध नाम पर दुर्वासा मुनी की याद आ जाती है लेकिन और किसी की याद नहीं आती।तो इन चीजों से मुक्त होने की जगह हमने स्त्री को लक्ष्य बना लिया (मैं कह सकता हूं कि हमारे साधु,संतों,सन्यासियों ने स्त्रियों के साथ अन्याय किया)और मैं मानता हूं की पूरी दुनिया की आधी आबादी (स्त्री रुप में) मौन,लाचार और असहाय रहेगी तो हम आधी आबादी के बचे हुए लोग चाह के भी दुनिया को सुंदर नहीं बना पाएंगे। आधी आबादी जब सबल होगी हमारी माताएं-बहनें और किसी मंच खड़ा होकर दो लाइन बोलने की स्थिती में होगीं तब मुझे लगता है की ये दुनिया सही अर्थों में मजबूत बनेगी।
जब मेरी शादी हुई थी आज से इक्कीस साल पहले,वो अपने नाम के आगे या पीछे कुछ नहीं लगाती है मैंने कहा था की कुछ तो लिख देना चाहिए मैंने डा. लगाने को कहा तो उन्होंने तुरंत मना कर दिया की नही क्या जरुरत है।हमारी जब बेटी पैदा हुई तो उन्होंने कहा की बच्ची का भी सरनेम नहीं लिखा जाएगा तो मैंने कह दिया की नहीं लिखा जाएगा।मैंने सहज भाव से जवाब दिया तो उनका बहुत आश्चर्य हुआ की ये तो सरनेम लगाने के लिए जरा भी लड़ाई नही किया(बड़ी आसानी से मान गया) दूसरा स्वभाव का पहलू औरतों का होता है की मैं नहीं लड़ा उस पर भी लड़ी की आप क्यों नहीं लड़े(कुछ तो कहना चाहिए था असानी से कैसे मान गए,क्या मन के अंदर रहा है)।फिर सात साल बाद हमार बेटा पैदा हुआ,उस समय भी नाम रखने की स्थिती आई तो मैंने पहला नाम साद्यंत रखते है भगवान विष्णु का नाम है,तो उन्होंने कहा की उसकी बहन राग कौशल सीख रही है तो उसी में दूसरा नाम कौशल रख देते है,मैंने हां कह दिया तो पूरा नाम साद्यंत कौशल हो गया।
औरतों के मन में इतना संशय है की मेरा सहज मान लेना भी उसको संशय में ले गया।अगर मैं उससे लड़ता और उसके बाद बात मानी जाती तो उसको ज्यादा खुशी होती मेरे तुरंत मान जाने से ज्यादा खुशी नहीं मिली। तो ये औरत का एक सरल स्वभाव उसको भरोसा ही नहीं होता कोई चीज सहज भाव से मिल जाती है उसको कठिनाईयों और दुश्वारियों से दिया गया है हर कदम पर, की उसे मिली हुई हर चीज रिवार्ड लगती है।
चीन में 1970 से पहले कोई पुरुष औरत का हत्या कर दे तो उस पर पुलिस केस नहीं बनता था और जो ऊंचे घरों की औरतें होती थी जब वो पैदा होती थी तो उनको लोहे के जूते पहनाए जाते थे ताकि उनके पैर विकसीत न हो क्योंकि जब वो महफिल में जाए तो अपने पति के कंधे पर हाथ का सहारा लेके ही चले।जिस जगह पर औरतों के ऊपर अधिकार के लड़ाई हो वो समाज कैसे विकसीत करेगा।
आज से इक्यासी साल पहले हैदरबाद के निजाम की 500 रानियां थी यानि की इस पृथ्वी पर ताकतवर आदमी दो निशान थे कि वो ताकतवर है की नहीं,अगर सही अर्थों में ताकतवर है वो ज्यादा से ज्यादा औरतों का स्वामी होता था उसके कब्जे में अधिकतम औरतों को रख लेता था।और भगवान श्री कृष्ण के बारे मे कहा जाता है की उनकी बत्तीस हजार रानियां थी तो इसमें कौन सी हैरानी की बात है।श्री कृष्ण जैसे वैभवशाली शक्तिशाली पूरे पृथ्वी पर उनके जैसा कोई दूसरा व्यक्ति उनके जैसा नहीं हुआ सोलह हजार रानियां रही होगी तो मुझे कोई अतिशयोक्ति नहीं लगती।जिसके पास जितनी जमीन और जितनी औरतें का स्वामी वहीं समाज और समकालीन समय का उतना बड़ा व्यक्ति होता है।
विवाह नामक संस्था कैसे बनी इन्ही कारणों से बनी,एक पुरुष द्वारा बहुत सारी औरतों को रखने के कारण बाकि पुरुषों को परिवार बनाना कठिन हो जाता था।इस समाज में कुछ ऐसे अग्रणी पुरुष रहे होगें जो इस सामाजिक तांने-बांने को बनाने पर जोर दिया होगा तब जाके विवाह नामक संस्था बनी।
पौराणिक कहानी जिसमें पता चलता है कि उस समय बड़ा अच्छा समय था उस समय में जरासंध ने बाईस हजार औरतों को बलि देने के लिए तैयार रखी हुई थी,श्री कृष्ण ने सोलह हजार रानियां थी,बुध्द ने औरतों को अपने संघ में आने से मनाही थी,आदिशंकर ने कहा औरत नरक की खान है,कबीर दास ने कहे की औरत की सांप पर छाया पड़ जाए तो अंधा हो जाएगा,उनके जैसे क्रांतिकारी आदमी ने भी कहा औरतों के लिए।
आज का समय हम लोग जी रहे है ये दुनिया का सबसे सुंदर समय है पुरुषों के लिए भी और औरतों के लिए भी लेकिन पुरुषों के लिए थोड़ा ज्यादा है क्योंकि पैसे की ताकत इन्हीं के हाथों में है।आज के समय में पैसे की ताकत हुई तो समझना वहीं मालिक है,वही तय करने वाला है।
एक कहानी याद आ रही है जो किसी पर भी लागू होती है।मैं उसका प्रसंग कर रहा हूं-
एक किंगडम था उस किंगडम एक राजा था और इसके राज्य में एक जादूगर आया उसके स्वागत में राजा ने सही से स्वागत नहीं किया इस कारण जादूगर को बड़ा गुस्सा आया तो जादूरग ने किंगडम के एक कुएं के पानी में कुछ ऐसा जादू करके गया कि जो उस किंगडम के कुएं का पानी पिए वो पागल होता जाए।धीरे-धीरे सारे किंगडम के लोग पागल होते चले गए,जब सारे लोग पागल हो गए तो राज्य में केवल तीन लोग पागल नहीं हुए थे जिसमें एक राजा उनकी रानी और सेनापति।इस दौरान बने सारे पागलों ने मिल की सोचा कि क्यों न सत्ता को पूरी तरह से पलट दिया जाए,तो जब इस बात का पता चला तो राजा और सेनापति को महल में भागते हुए के ऊपर वाले हिस्से के आखिरी कोने में पहुंच गए और नीचे पागलो की पूरी फौज आ गई थी तो राजा ने सेनापति से कहा की सेनापति जी क्या किया जाए की सब सामान्य हो जाए या तो कुद के जान दे दें या कुएं का पानी पी लिया जाए क्या? तो सेनापति ने कहा की महाराजा पानी पीने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।और मैं आप के सेवक हूं तो पहले पानी मैं ही पी लेता हूं।उसके बाद आप के विचार के अनुसार आगे क्या करना है फिर करिएगा।सेनापति से राजा ने पूछा की पानी है कुएं का आप के पास तो सेनापति ने कहा महाराज पानी तो लेके ही घुम रहा हूं(हंसते हुए)।
राजा और सेनापति ने जैसे ही पानी पीया पागलों की भीड़ सामने आई तो राजा ने कहा की हम लोग भी पानी पी लिए है अगर कोई दिक्कत होतो आप लोगों के पास जो पानी है उसे भी हम लोग पी लेते है।
फिर क्या हुआ कि जो पागल लोग मारने आए थे वो सब शांत हो गए।और वो सब बोलने लगे की महाराज की जय हो महाराज का जय हो।
महाराज ने कहा की सेनापति जी ये पानी पीने और पहले में क्या अतंर हुआ कुछ पता नहीं चला,लोग वही है मैं वही हूं,सेनापति ने कहा की महाराज आप समझे नहीं और अंतर बस ये हुआ की आप ने उनके मन की किए की नहीं,आप ने उनके मन के हिसाब से किए,और सब पागल है किसी में परखने की क्षमता तो नहीं है।इस हिसाब से सब बराबर हो गए।
तो इस पूरी कहानी का सार क्या है- पुरुष हो या औरत अरग वो अकेले खड़ा है तो टूट जाएगा समाज के लोग ही उसे तोड़ देंगे अगर वो समाज के साथ खड़ा है तो हो सकता है कुछ और समय खड़ा रह सके।और उचित मौका मिले निकाल के अपनी जगह तलाश करके फिर लोगों को शिक्षित कर ले।
एक और कहानी और आप लोगों के सामने रख रहा हूं-एक किंगडम में चोर पकड़ा गया कुछ हत्याएं भी की थी,चोर को राजा ने चोर को मौत की सजा दी और तीन दिन बाद उसकी फांसी होनी थी।चोर अपनी सजा सुनने का बाद बहुत गिड़गिड़ाया रोया की एक बार राजा से मिलावा दो,उसके इस फरियाद को सुना गया।फांसी के दिन राजा ने पूछा की उस चोर की क्या स्थिती है कुछ उसकी आखिरी इच्छा है।तो सैनिकों ने बताया की वो आप से मिलने की बात कह रहा है तो राजा ने कहा बिल्कुल लाओ उसे।चोर को लाया गया राजा के सामने,चोर राजा को देखते ही कहा की मैं मरने से पहले आप को एक अनमोल चीज देना चाहता हूं जो मेरे गुरु ने विद्या दी थी और उसने अपनी जेब में हाथ डाला उसने मोती निकाला और कहा की इस मोती को लगाने से मोती का पेड़ निकलता है जिससे अनगिनत मोतीयां निकलेंगी जिससे आप दुनिया के बहुत अमीर हो जाएंगे आप ये मोती ले लिजिए मेरे से, तो राजा ने कहा की ठीक है दे दो तो चोर ने कहा की ये मेरे हाथों से लगेगा तो राजा ने कहा की ठीक है मेरे आंगन में लगा दो। राजा,सेनापति सब चोर को लेके आंगन में गए और कुदाल से खोद के लगाने वाला था लेकिन वो चोर बोला की गुरु ने एक और बात बताई ये उसके हाथ से लगवाना जिसने कभी चोरी नहीं की। तो राजा ने सेनापति को कहा की आप इस मोती को लगाइए तो सेनापति ने कहा की महाराज मैं तो चोरी की गांरटी नहीं ले सकता हूं चोरी एकाध बार चोरी मैंने भी की है।तो सेनापति ने कहा की महाराज आप तो साक्षात ईश्वर के प्रतिक है आप खुद लगाइए तो (राजा भी परेशानी आ गए) राजा ने कहा की मैंने भी राजकोष से पैसे चुराए है उसी बीच राजा के मन में बात आई और कहा की इतना तीक्ष्ण बुध्दि वाला जो राजा और सेनापति दोनों को चोर साबित कर दो वो चोर तो नहीं हो सकता है तुम कुछ और हो,बताओ तुम कौन हो? उसने कहा की मैं पड़ोसी देश का राजा हूं मैं भेष बदल कर घुम रहा था तो आप को राज्य में आप के लोगों ने पकड़ लिया उस समय बताया होता की मैं कहीं का राजा हूं तो वहीं मार दिया जाता।
तो राजा ने बोला की बताओ तुम्हारे साथ किया करें,उसने कहा की महाराज मैं अपना राज्य खुद ही छोड़ के संयास ले लिया हूं आप ही मेरे राज्य का राजा बन जाइए।
पूरी कहानी का सार क्या है- अगर उसको तीन दिन पर फांसी होने वाली थी और वो तीन दिन का समय बाई नहीं करता और अपने बुध्दि से अपने को बचाने का पूरा जाल बुनता तो मार दिया गया होता। तो करना क्या चाहिए की मुश्किल समय में कोई भी फंसा हो पुरुष या औरत हो,किसी कंपनी का मालिक हो,छात्र हो,नौकरी पेशे से हो अपनी बुध्दि का इस्तेमाल करके कुछ समय जरुर बाई करना चाहिए कि ये मुश्किल समय टल जाए।
पूरी कहानी का सार यहीं है की कहीं कोई मोती नहीं थी,कहीं कोई मोटी नहीं उगना था।ऐसा कहीं नहीं होता है।
देखिए होता क्या है कि औरतों को कैसे बंदी बना लिया जाता है कैसे घरों में कैद हो जाती है और बाहर नहीं निकल पाती ऐसे बहुत औरतों को देखा है,मैं बहुत घुमा हुआ है दुनिया लगभग 87 देशों को सही देखा है।क्या ऐसी चीज है की औरतें सहसा भरोसा कर लेती है और वो वहां से निकल नहीं पाती,चुप बैठ जाती है।
एक कहानी है की एक राजा को वजीर ढूंढना था।उसने पूरे नगर में संदेशा भेजवा दिया की एक पहेली है जो उसको हल कर देगा मैं उसको अपना वजीर बना दूंगा।उसी दौरान एक फकीर ने राजा के कान में कुछ बताया था की वजीर चुनते वक्त इन बातों का ध्यान रखना,राजा को उसकी बात सही लगी।उसने क्या किया की जो तीन सबसे योग्य आदमी आए जिनको राजा ने खुद साक्षात्कार किया और उसमें से भी को एक को रखना था।उसके बाद राजा के आदेश के बाद तीनों को एक कमरे में बंद करवा दिया और दरवाजा बंद करवाने के समय ये बोला की कोई तीन संख्या कही जाएगी जिससे दरवाजा खुल जाएगा,अब वो तीन संख्या क्या है वो दरवाजे के बाहर रख रहा हूं और दरवाजा बंद कर रहा हूं।और तीनों में से एक कमरे के कोने में जाकर ध्यान लगा कर बैठ गया और दो कलम-कागज से गणित के तौर-तरिके से अंक निकालने लगे। उसी बीच पहला जो ध्यान किए हुए था अचानक उठा दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।और वो दोनों को पता ही नहीं चला की ध्यान करने वाला कब बाहर निकल गया।
राजा खुद ही आए उसको लेके और कहा की बंद करो ये अपना गुणा-गणित,जिसको अपना वजिर चुनना था मैंने चुन लिया है।तो दोनों ने पूछा की ये कब बाहर निकल गया तो राजा ने कहा की मैंने दरवाजा बंद ही नहीं किया था।दरवाजे को केवल लगा दिया था जैसे बंद किया गया हो।
और जो फकीर मिले हुए थे उन्होंने कहा था की वजीर चुनते वक्त य ध्यान रखना जो इस परिक्षा में आंख करके बैठ गया वही दरवाजा खोलेगा।उसी की दृष्टि देख लेगी की ऐसा कोई संख्या नहीं है कमरे से बाहर निकलना शर्त है जो बाहर निकल आए उसे चुन लेना।
तो वैसे ही हमारे घरों में हम सबके घरों में दुनिया के घरों में औरतों को घरों में ऐसे ही भरमा के बिना संख्या के दरवाजे से बंद कर दिया जाता है।औरतें हिम्मत नहीं कर पाती की दरवाजा खोले और बाहर निकले और अपने मन की उड़ान उड़ सके,उनको रोका जाता है और साथ ही साथ एक और बात है जो वैज्ञानिकों ने कहा है की परमात्मा ने फिजियोलाजी में औरत को और पुरुष को अलग बनाया है। उसको अलग तरिके से निर्मित किया है औरतों के लिए कुछ निश्चित चीजें तय की,जैसे पुरुष के लिए वर्जिस,व्यायाम,दौड़ना,घुड़सवारी करना और भी तमाम चीजें है।औरत के लिए कला,साहित्य,पेंटिग,नृत्य ये सारी चीजें तय की ये सारी चीजें फबती है अच्छी लगती है।ये सब चीजें आदमी के जीवन में कीतना गहरा प्रभाव डालती है जैसे किसी हम में से ही किसी बच्ची को(सभा में बैठे लड़कीयों को प्रतीक के रुप रख कर कही) साड़ी पहना दिया जाए और उसको एक-एक सीड़ी किसी ऊंची मंजिल से उतरने के लिए कहा जाए तो बहुत ही आर्डर से डिग्निटी से उतरेगी और चढ़ने के लिए कहा जाए तो एक कठिन रुप से कदम आगे बढाने पड़ते है।और साड़ी के जगह जींस पहना दिया जाए तो हम कुछ बदल जाता है उसमें कोई उलझन नहीं होती है उतरने और चढ़ने में।
यानि की साड़ी में आप के व्यक्तित्व को इतना गरिमा दे दिया कि आपने उस गरिमा को पा लिया और जींस और टी-शर्ट ने आपको इतनी बेचैनी दे दी की आप उस गरिमा से इतर बहुत तेज गति आ गई।तो आप सोच के देखिए की कपड़े आप के व्यक्तित्व को बदल सकते है(आपकी आदत को बदल सकते है)।
बाकि चीजें आप को कितने गहरे में बदल सकती है आप क्या है और क्या हो सकते है।जब हम संघर्ष सफलता और मौका की बात करते है तो संघर्ष भी यहीं है सफलता भी यहीं है और मौका भी यहीं है बस आप को लेने आना चाहिए।
अक्सर ये बात सुनने को मिलती थी मुझसे भी पुछा जाता है की पहले का जमाना अच्छा था तो मैं सिरे से खारिज करता हूं की पहले का जमाना अच्छा था,जमाना आज का अच्छा है अभी का अच्छा है।इससे बेहतर और अच्छा पल इस दुनिया में कभी नहीं आया था।आदमी छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करता था आज उसको पलक झपकाते मोबाइल का एक बटन दबाते ही सारी सुविधाएं उसके घर आ जाती है।60-70 के दशको में गाय और भैंसों के गोबर से अनाज को अलग करके धो-सुखा करके खाते थे। अब दुनिया में कहीं नहीं ऐसी स्थिती नहीं है।पहनने के लिए कपड़ा नहीं होता था आज ये स्थिती नहीं है।आज हम लोग बहुत ही विकसीत युग में जी रहे है।अमेरिका भले ही दुनिया का लीडर है,भले ही उसका तीस ट्रिलियन.चायन का इकोनामी बीस ट्रिलियन डालर है।अमेरिका की पांच कम्पनीयां विश्व के 155 देशों के इकोनामी पर भारी है।तो अमेरिका कहीं न कहीं हम लोगों से बहुत आगे निकल गया है।और आगे निकलने का कारण यही है कि उसने ये नहीं पूछा की तुम किस जात के हो वहां जाने पर वो ये पूछते है की आप क्या कर सकते हो।दुनिया के सारे टैलेंट ऐसा क्या था की अमेरिका ही भाग के चले गए(कार्ल मार्कस भी अमेरिका चला गया जो पूंजीवाद के खिलाफ था,जिसने एक नया कल्ट दिया)साम्यवाद और चीन,रशिया,क्यूबा देश जिन्होंने साम्यवाद अपना लिया पूंजीवाद के खिलाफ चले गए,बाद में व्यवस्थाएं टूटी समझ आया की पूंजी सबके लिए जरुरी है सबके लिए लाइफ स्टाइल जरुरी है सबके लिए रोटी कपड़ा मकान जरुरी है।और पूंजीवाद पहले दिन ही जीवन स्तर देने की बात करता है।साम्यवाद सबको बराबर करने की बात करता है सबको बराबर करना समाज को अच्छा बनाना नहीं है।जिसके पास जितनी प्रतिभा है उस हिसाब से देना सरकार का काम है।इससे समाज ज्यादा आगे बढ़ेगा।
सारे टैलेंट अमेरिका ही क्यों चले जाते है क्यों नही चीन जाते है,बीजिंग में किसी को नोबेल क्यों नहीं मिला सारा अमेरिका वाले ही क्यों ले जाते है। केवल एक कारण से जब वहां कोई टैलेंटेड आदमी जाता है तो उन्हें अपने यहां से कहीं और नहीं जाने देते इसलिए आज अमेरिका महान है।
सीवी रमन साबह नोबेल पुरस्कार विजेता है जब वो भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलुरु डायरेक्टर थे उस समय उनके यहां लेडी आई पीएचडी करने के लिए लेकिन सीवी रमन साहब ने उनकी पीएचडी करना खारिज कर दिए, और उस लेडी ने वहां पर सत्याग्रह किया अपने हक के लिए। फिर सीवी रमन साहब ने कुछ शर्तें रखी उसमें खास बात ये रही की कोई यहां समय की छूट नहीं दी जाएगी (एक औरत समझ कर)और तुम ये निश्चित करो की पुरुषों का ध्यान तुम्हारें कारण न भटके,(वो कैसी निश्चित करेगी की ध्यान न भटके,सीएमडी सर)तो कठिन शर्तों के बाद उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की,बाद में रायल मूजीयम की डायरेक्टर रहीं और आक्सफोर्ड में बड़े पद पर रही। तो मेरा कहना है की बड़े-बड़े लोगों ने औरतों को दबाया और नोबेल पुरस्कार मिले लोगों ने सौतेला व्यवहार किया।
औरत के बारे में श्री कृष्ण ने गीता के दशवें अध्याय में आठ गुण बताए है जो मैं आप लोगों को बता रहा हूं-यश,सौभाग्य,उत्तम वाणी,स्मृति,बुध्दि,धैर्य,कीर्ति,क्षमा ये खास गुणों की बात उन्होंने की है और मेरी कहने से इसकी सही व्याख्या जाननी हो तो आचार्य रजनीश ने की है। मैं कहता हूं की इस देश के साथ दुनिया के प्रत्येक औरतों को ये खास व्याख्या जरुर सुननी चाहिए।इससे पता ये चलता है की औरत महान क्यों है,औरत को ही अधिकार क्यों मिला की पुरुष पैदा करे और पुरुष ने उसके साथ जो जातीय सिर्फ इसलिए की पुरुष को पता था की औरते हमारे से काबिल है,अगर इसको दबा करके नहीं रखा गया तो सम्राट पुरुष नहीं होगा औरतें होगी।