बहुत-बहुत आभार,आज बहुत अच्छा दिन है की मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी के चांसलर पद्म श्री से नवाजे गए है।इस विशेष उपलब्धि पर तालियां बनती है।
मंच पर मंचासीन सीमा राय मैम,शहनवाज आलम जी,शाहिमा जी,सतीश कुमार राय जी जुड़े हुए बनारस से,प्रणाम करता हूँ।आरती द्वेदी साहब उन्होंने बहुत सारगर्भित तरीके से अपनी बात रखी।
मैं मानता हूँ की महात्मा गांधी जैसे एक व्यक्ति जिनको कह सकते है की पूरी दुनिया के बीसवीं सदी के सबसे कीमती व्यक्ति है।दुनिया में कुछ लोगों पर बहुत ज्यादा लिखा पढ़ा गया।एक वक्त था जब मुझे ऐसा संज्ञान था की महात्मा कबीर पर सबसे ज्यादा शोध किए गए और अब महात्मा गांधी एकलौते ऐसे व्यक्ति है दुनिया में जिनके ऊपर सबसे ज्यादा शोध किया जा चुका है।जैसे हम लोगों पत्रकारिता में सिखाया जाता है की बुलेट प्वांइट बनाओ तो कह सकते है की एक-एक बुलेट प्वांइट पर एक-एक पीएचडी हो चुकी है।हर चीज को एक नए तरीके से देखने का नजरिया होता है।और पिछले दो वर्षों में मैंने अलग-अलग इंस्टिट्यूटों में जा करके पढ़ना शुरु किया पत्रकारिता के बारे में।
पहले मैं बड़ा साई था जाने बचता था लेकिन मैं जब जाना शुरु किया तो उसके बड़े अच्छे परिणाम निकल के आए..पहला परिणाम तो ये निकल के आया की आजकल की सोशल मीडिया है उन प्लेटफार्मों पर मैं था लेकिन सक्रियता बिल्कुल ही नहीं था,मैं बचता था उस पर कुछ डालने और बोलने से।इन दो सालों से जब मैंने भारत एक्सप्रेस की स्थापना की और इस चैनेल को मैंने चलाना शुरु किया और जगह-जगह जाके बोलना शुरु किया अलग-अलग विषयो पर तो मैंने देखा की सोशल मीडिया पर मेरी बात को सुनने वाले लोगों की संख्या बहुत अचानक बढ़ी,और इंस्टाग्राम एक प्लेटफार्म है उस पर मैंने जो पढ़ाया है जो बोले है उस पर छोटी-छोटी क्लिपें पड़ी है और करीब 6.6 मिलियन लोग धीरे-धीरे जुड़ चुके है मेरे से।
देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात हो रही है,बाकि बातें तो सबने कही है(द्वेदी साहब ने बहुत अच्छा बोला)अगर गांधी जी के बारे में और मुझे समझना होगा तो इनसे समझूंगा।मोहन करमचंद गांधी से गांधी से महात्मा और राष्ट्रपिता और उस समय के समस्त दुनिया के नेताओं में एक चमकते हुए ध्रुव तारें की तरह अपनी उपस्थिती प्राप्त करने के पीछे गांधी जी का जो सफर रहा उस पर भी थोड़ी बात होनी चाहिए।
गांधी जी एक बहुत महान पत्रकार थे इससे दुनिया में कोई इन्कार नहीं कर सकता।जिस अकेले आदमी ने करीब-करीब 70 हजार पत्रों को अपने हाथ से लिख के जबाव दिया लोगों को...अभी तक के अठाइस साल के मेरी कैरियर में व्यक्तिगत एक हजार तक ईमेल लिखे होगें।लेकिन हाथ से लिखे पत्रों का मुझे याद है की मैंने 100 पत्र भी नहीं लिखें होगें।अपनी मां को लिखता था जब मैं बाहर पढ़ने गया था तब।
एक छोटी सी कहानी से बात शुरु करुंगा-एक गांव में एक झोपड़ी से बहुत जोर-जोर आवाज आने लगी की मेरे घर में आग लगी है मुझे बचाओ...मेरे घर में आग लगी है मुझे बचाओ मोहल्ले के सारे लोग एक-एक कर के धीरे-धीरे इक्ठ्ठा हो गए और लोगों ने सोचा की अंदर आग लगी है लेकिन बाहर से दिखाई न दे रहा है तो भीतर गए,सबने पूछा की अम्मा आग कहा लगी है आप बताइए...तो वो औरत बहुत जोर-जोर से खिल-खिला के हंसी बोली की तुम लोग बाल्टियां लेके आए हो आग बुझाने के लिए तो आग मेरे मन के भीतर लगी है...तुम विज्ञान की बाल्टियां लेके आए हो,मेरी आग तुम्हारी बाल्टियों से नहीं बुझने वाली है।मेरी आग बुझाना चाहते हो तो कुछ और इंतेजाम करो।कहानी प्रतिकात्मक है इसी तरह से कभी महात्मा गांधी के अंदर आग लगी थी और मन के अंदर आग जब उनके लगी तो उन्हें विज्ञान की बाल्टियों का बहुत पक्का-पक्का और पूरा पता था।की बाह आग लगी हो तो बाल्टियों से पानी फेंक कर बुझाई जा सकती है लेकिन जो मन की आग उसने एक साधारण विदेश पढ़ने गए मोहनदास करमचंद गांधी को किस तरह से रुपांतरित और प्रवर्तित किया।जैसे हम संसार में जीते है तो हमारे बहुत सारे चेहरे है बहुत बातचीत करने के तरीके है बहुत यंत्रवत व्यवस्था है।19 जुलाई को दिल्ली में कार्यक्रम था महाकवि गोपालदास नीरज जब जिंदा थे तो उन्होंने जीते जी ही अपने फाउंडेशन का संरक्षक बना दिए और उसका हम फंक्शन करते है।पिछले साल 2022 में हमने अन्नू कपूर जी को सम्मानित किया था इस बार गोपाल दास नीरज सम्मान लेखन जावेद अख्तर जी को दिया गया।उस फंक्शन में अमेरिका के बहुत बड़े शख्सियत है तो उनकी किताब मुझे भेंट की अन्नू कपूर जी ने...वो कहानी भी मैं सुनाऊंगा गांधी जी के सबंध में,द चाइल्ड फैमिली है जो अभी दुनिया में सबसे अमीर परिवार है और वो ऐसा परिवार जो पर्दे की पीछे रहता है उस परिवार के ताकत के बारे में कह रहा हूँ,अगर दुनिया में जीतने कार्ड स्वाइप हो रहे होंगे उसमें से 80 फीसदी कार्ड का पैसा उनके टर्मिनल से होके जाता है।वो पूरी दुनिया के फाइनांस कंट्रोल करने वाले वर्ल्ड के सबसे बड़े बैंकर्स है।द चाइल्ड ने अपनी आत्मा कथा में बड़ी मजेदार कहानी लिखी।एक दिन मेरी सिक्योरिटी को बाईपास करके भिखारी आ गया जो और जोर-जोर से शोर मचाने लगा।मैं कमरे से बाहर निकला,मैंने पूछा क्या बात है...क्या चाहिए आप को...उसने कहा की भिखारी क्या चाहिए पैसा चाहिए मुझे...द चाइल्ड ने कहा की अगर तुम शोर नहीं मचाते तो मैं तुम को 20 डालर देता(ये बात सत्तर साल पहले की है)लेकिन तुम ने शोर मचाया तो मैं तुम्हें 5 डालर ही दूंगा।भिखारी ने कहा की अब तुम मुझे भिख मांगने और लेने के बारे में नहीं बताओ।तुम बैंकर हो तुम्हें थोड़े नहीं बता रहा हूँ की बैंकिक कैसे की जाती है ये मेरा काम है मैं समझता हूं की मुझे कैसे करना है।
द चाइल्ड ने उसकी बड़ी अच्छी व्याख्या की अपनी जीवनी में की मुझे पहली बार एहसास हुआ की भिखारी का भी एक चेहरा होता है उसकी एक पहचान होती है उसका एक अपना काम करने का तरीका होता है।मैं बैंकर हूं लेकिन कभी मैंने अपने चेहरे के बारे में खोज नहीं की थी,जानने की कोशिस नहीं की थी।उस दिन पहली बार मुझे ऐसा लगा कोई आदमी जो बात बोल रहा है सिद्दत से और महात्मा गांधी के बारे में मैं कहूं तो महात्मा गांधी ने भी अपने जीवन की खोज किया।महात्मा गांधी की बात की इतनी कीमत पूरी दुनिया में इसलिए हुई,जिस आदमी का एक चेहरा होता है और उस चेहरे के बारे में स्वयं जानता है जिसको वो खोज कर के जान के परख के निश्चित करता है उसी आदमी की बात आम जन से लेके ऊपर तक के लोग सुनते है,समझते या समझने की कोशिश करते है अगर समझ नहीं आती है तो।गांधी जी अपना चेहरा बनाया और पूरी दुनिया में गांधी जी भारत के पूरे आंदोलन को अहिंसावादी आंदोलन को जिस स्तर तक लेके वो गए उसके पीछे वो गांधी जी का रुपांतरण था।नहीं तो इस वक्त में वो ब्रिटेन पढ़ने के लिए गए बैरेस्टरी और पढ़ के जब वो साउथ अफ्रीका आए तो उसके कंटेम्पररी बहुत सारे लोग थे जो उनसे बहुत अच्छे मार्क से पढ़ के आए थे और बहुत अच्छी वकालत कर रहे थे और गांधी से ज्यादा पैसा कमा रहे थे।लेकिन होता यही है की पैसा,पदवी,ओहदा सब किनारे रह जाता है।
अथारिटी दो तरह की होती है-एक फार्मल और दूसरा इनफार्मल।फार्मल अथारिटी तो वही है जो जवाहर लाल नेहरु को मिली प्रधानमंत्री की कुर्सी और इनफार्मल वो अथारिटी होती है जो किसी कुर्सी की मोहताज नहीं होती बल्कि कुर्सी उस तक चलके आती है और वो जहां बैठता है उस कुर्सी को सुशोभित कर देता है।फार्मल अथारिटी के लिए आप को कुर्सी चाहिए शोभा बढ़ाने के लिए लेकिन इनफार्मल अथारिटी के लिए आप को कोई कुर्सी नहीं चाहिए।जवाहर लाल नेहरु गांधी जी की पहली पसंद थे और प्रधानमंत्री बने लेकिन वो जब भी मिलते थे तो बापू का पैर छूते थे।सिर्फ एक कारण से जिस कुर्सी को पाने के लिए नेहरु ने थोड़ा बहुत संघर्स किया और गांधी जी को वो कुर्सी मिली हुई ही थी सहज ही वो कुर्सी को दान दे दिया।और उन्होंने कहा की ये जे मेरे जीवन यात्रा की लड़ाई थी वो कुर्सी के लिए जो थी ही नहीं।वो लड़ाई स्वराज के लिए थी।
गांधी जी की जो पत्रकारिता थी वो मिशन की पत्रकारिता थी देश को आजादी की उस वक्त बहुत जरुरत थी और उन्होंने अपने तरीके से जो प्रयास किया वो अहिंसावादी प्रयास था।लेकिन गांधी के भी बहुत के भी बहुत आलोचक थे।गांधी के विचारों से सहमत न रहने वाले एक बहुत बड़े तबके के लोग थे लेकिन गांधी को मानने वाले का तबका बहुत बड़ा था।और मुझे लगता है की आम आदमी की जो प्रतिक्रिया होती है वो बहुत ही रिएक्शनरी होती है।लेकिन रिएक्शन को समझना और समझाना बड़ा आसान है।अहिंसा को समझाना को बड़ा कठिन है।ऐसा आमतौर पर होता नहीं की एक थपड़ एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल सहज बढ़ा दे,ये बड़ा कठिन काम है।
आप सभी को ये जान कर ताजूब होगा की ईसा मसीह ने अपने पूरे जीवन अहिंसा का पालन किया।ईसा मसीह को जब फांसी दी गई तो जो उनके आठ सबसे करीबी दोस्त थे वो उनको छोड़ कर भाग गए।ईसा मसीह को जब फांसी पर लटकाया गया उसके बाद उनका मृत शरीर तीन महिलाओं ने उतारी जिनसे ईसा मसीह कभी मिले नहीं थे।उनमें से एक औरत वेश्या थी और दो औरतें दूर से ही उनको देखती थी और फालो करती थी।लेकिन ईसा मसीह जिन लोगों के साथ पूरे जीवन रहे वो उनको छोड़ कर भाग गए लेकिन दुर्भाग्य क्या है-ईसाईयों के चर्चों में ईसा मसीह के पहले उन आठो की पूजा की जाती थी।ठीक उसी तरह से गांधी जी जब संघर्ष कर रहे थे तो गांधी का भी बड़ा गहरा विरोध था उसमें कुछ गरम दल के लोग और कुछ नरम दल के लोग थे,अब गरम दल के लोगों में भी मैं सुभाष बाबू का नाम बड़े आदर से लेना चाहूंगा उनके जैसा भी भारत में प्रतिभाशाली दिमाग और नेतृत्व करने वाली क्षमता मैं किसी दूसरे व्यक्ति में नहीं देखता और त्याग की बात करूं तो भगत सिंह और चंद्रशेखर सिंह जैसा त्याग दूसरे में नहीं दिखता है।लेकिन ये तीन लोग नहीं थे जो गांधी के विरोधी थे ये तीनों जब मिलते थे तो गांधी के पैर छूते थे।
भारतीय परम्परा में बुध्द में और शंकराचार्य में बड़ा विरोध रहा..बुध्द पहले हुए और शंकराचार्य उनके थोड़े बाद हुए,बहुत गहरा विरोध था,शैव और वैष्णव के लेके।लेकिन शंकराचार्य ने बुध्द की जैसी स्तुति लिखी वैसी स्तुति दूसरे किसी आदमी ने बुध्द के बारे में नहीं लिखी।जबकि परस्पर बड़ा विरोध था।
महात्मा गांधी ने बहुत बार लिखा की हमारे हिंदू(समातन) धर्म से ज्याद उदार कोई नहीं है...लोगों ने पूछा की आप ऐसा क्यों लिखते है,उन्होंने कहा की सिर्फ एक कारण से...की हिंदू धर्म में अपने किसी विरोधी को फांसी पर नहीं लटकाया थोड़ा टिनफिन रहा लेकिन मान गया।किसी फरीद को फांसी नहीं दिया गया हिंदू धर्म में संघर्ष रहा लेकिन गांधी ने इस बात को बार-बार रेखांकित किया की मेरा विरोध तो रहा।अंत में गांधी को जिन कारणों से नाथूराम गोडसे ने मारा इस बात पर सौ मे ले निन्नावें लोगों ने खंडन किया और मैं भी खंडन करता हूँ।कि नाथूराम गोडसे ने गांधी को गोली मारी तो अपने नेहस्त स्वार्थों के चलते और अपनी कम समझ के चतले मारी अगर गांधी की कुर्सी पर गोडसे को बैठाया गया होता तो शायद गाधी जितना न्याय गोडसे कभी नहीं कर पाया होता।जितना उन परिस्थितीयों में गांधी ने न्याय किया।
पत्रकारिता में गांधी ने क्या पब्लिकेशन दिया,कैसे दिया,क्या दिया वो सब यहां पर चर्चा हो चुकी है।हरिजन से लेके इंडियन ओपिनियन लेके,यंग इंडिया से लेके नौजीवन से लेके ये सारी पत्र-पत्रिकाएं अपने संघर्षमय जीवन के साथ भी ये चीजें की और निकाली और ये बड़ी कमाल की बात है।कुछ और बातें मैं जोड़ना चाहूंगा इस धरती पर जितने महापुरुष हुए सोलहवीं शताब्दी से लेके अभी तक वो सारे बहुत पढ़ने लिखने वाले लोग थे और नए जमाने में मैं बता दूं जैसे विलगेट्स का नाम लिया जाता है दुनिया के अमीरों में और परोपकारी(फिलैंथरोपिस्ट)आदमी है पैसे लगाते है,देखा जाए तो भारत में रतन टाटा का नाम लिया जाता है।वारेन वफेट का नाम लिया जाता है,वर्ल्ड डिजनी का नाम लिया जाता है।
किताबें,पत्रकारिता और साहित्य ये सारा सिर्फ इसलिए है की हम अतीत को जान के अपने वर्तमान और भविष्य और बेहतर से बेहतर बना सके।
जैसा मैंने कहा की शायद महात्मा गांधी फिर पैदा हो जाए इस हिंदु स्थान की सोसाइटी में और महात्मा बुध्द फिर से पैदा हो जाए मेरी गांरटी है कि महात्मा गांधी और बुध्द को मानने वाले ही इन दोंनो लोगों का विरोध करना शुरु कर देंगे,क्यों जब कोई भगवत्ता को उपलब्ध होता है तो मरे हुए धर्म पुराने धर्म और पुराने लोग और पुरानी मान्यताएं पुरानी मर्यादाएं उसका विरोध करती ही करती है।
बुध्द के बारे में एक खास बात आप सबके सामने रखता हूं- बुध्द पर सबसे ज्यादा गहरे से गहरा लालछन(इलजाम)लगा श्रावस्ती के जयंतवन में,प्राजग्ता एक औरत थी उस समय के वैष्णव संप्रदाय के लोगों ने पैसा देकर के उसको काम करने के लिए किया की तुम रोज जयंतवन बुध्द के प्रवचन सुनने जाओ और बाहर निकल के ये प्रचारित करो की रात्रि तुम वहीं बुध्द के साथ विश्राम करती हो।और उसने काम बहुत अच्छे से शुरु कर दिया,महीनों निकल गए उसके बाद उस लड़की के मन में बहुत गहरा विषाद पैदा हुआ और षड्यंत्रकारीयों को लगा की किसी दिन ये सबके सामने पोल ही न खोल दे इसलिए उसकी हत्या कर दी गई और उन्हीं लोगों ने वहां के राजा से ये कहना शुरु किया जो बुध्द की सबसे करीबी शिष्या थी आजकल दिख नहीं रही है।उसकी तलाश की जाए और उन्हीं षड्यंत्रकारीयों ने किया बुध्द जिस कुटी के पीछे रहते थे वहीं उसकी लाश गड़ी हुई पाई गई।
बुध्द के पास जो हजारों लोग आते थे उस वक्त ऐसा हुआ की कुछ पच्चास-साठ लोग रह गए,लोग आना जाना बंद कर दिए।लेकिन उस बीच में बुध्द ने अपना मौन नहीं तोड़ा चुप रहे।उनको उस पास के शिष्य थे वो कह रहे थे की अब तो बोलिए,बुध्द ने कहा की सत्य को पता करने के लिए या सत्य को बाहर आने के लिए मेरा बोलना ये बड़ा अनुचित होगा,सत्य अपना रास्ता स्वयं ढूढ़ लेगा ये मेरा सबसे निवेदन है की आप लोग कुछ न बोलें।प्राजग्ता ने इतना काम किया की सारा कूड़ा-कचरा गायब हो गया और ये जो बचे हुए पच्चास लोग है मुझे पता चल गया की यही असली लोग(शिष्य)है यही मेरे पर भरोसा करते है,बाकि तो भीड़ किसी न किसी उम्मीद से आती थी।और हुआ ये राजा ने पता करने के लिए जो लोग गठित की थी।श्रावस्ती के एक मधुशाला में सारे षड्यंत्रकारी संयोगवश इकठ्ठा होते है और मदिरापान करते है और वहां पर सारा षड्यंत्र खुल जाता है।और जो राजा के गुप्तचर होते है वो अपने कानों से सब बातें सुन लेते है और राजा बुध्द के पास आते है और उनसे क्षमा मांगते है कि एक बार तो बुध्द मैं भी भ्रमित हो गया चूंकि मैं आपको इतना मानता था की मेरी हिम्मत नहीं हुई की मैं अपने सैनिक आप के आश्रम भेजूं लेकिन मेरे मन में पाप समा गया था।
महात्मा गांधी ने जो किताब लिखी सत्य के साथ मेरे प्रयोग,ऐसा क्यों लिखा होगा..सत्य के साथ क्या प्रयोग हो सकते है लेकिन उनको ये लिखना पड़ा,आम लोगों को बताने के लिए कि मेरे जीवन में मैं ऐसा था फिर ऐसा हुआ यानि की गांधी नामक एक व्यक्तित्व अपनी तमाम बातों और कमजोरीयों को धीरे-धीरे और परत द परत खोलता है।और जनता को सामने बड़े साफगोई से रखता है।ऐसा नहीं है की बुध्द और गांधी को एक दिन में स्वीकार किया गया,मुझे लगता है की बुध्द और गांधी पुन:पैदा हो जाए तो सरकार गिरफ्तार करवा कर जेल में डाल दे।क्यों की बुध्द तो ईश्वर को मानते ही नहीं थे उन्होंने पूरे जीवन ईश्वर को नहीं माना उन्होंने कहा अप दिपो भव: और गांधी भी ऐसा ही कहते है अपने को बदलो,गांधी ने कोई धर्म नहीं चलाया गांधी ने आदमी के चेतना पर भरोसा किए जगाने की दिशा में प्रयास किया वे अपने लेखों से पत्रिकाओं से और भी तमाम चीजों से।
जामिया मिलिया में महात्मा गांधी एक सभा में बोलने के लिए गए थे और बोल के निकल रहे थे और गाड़ी में बैठ ही रहे थे और किसी ने बिना ध्यान दिए दरवाजा बंद कर दिया और गांधी जी की अंगुलियां दब गई जिससे चोट काफी आई थी।गांधी जी ने उस समय उपस्थित पत्रकारों के सामने हाथ जोड़ा बोले की मेरा निवेदन है की इस घटना को छापिएगा मत,क्योंकि लोगों को पता चलेगा तो लोगों को बहुत कष्ट होगा और वो सब बहुत सारे पत्र लिखेंगे खरीद कर जिससे उनका पैसा व्यर्थ जाएगा,तो इतनी गहरी संवेदनशीलता ये गांधी के अंदर ही आ सकता है। आप सोचते है आज के नेता के अंदर ऐसी संवेदनशीलता आ सकती है।
गांधी जी किसी सभा में गए हुए थे वहां नेहरु जी और सरदार वल्लभ भाई पटेल थे उस आयोजन में एक महिला पत्रकार थी और वो फोटो उतारती जा रही थी और पीछे गमला रखा हुआ था जिस पर उनका पैर पड़ जाने से वो गिरी और उनका सिर फट गया...गांधी जी ने वल्लभ भाई पटेल से कहा अब तो तुम उप प्रधानमंत्री हो गए हो मैं ही इसको अपने उठा के ले जाऊं या तुम अपनी गाड़ी से हास्पिटल लेके जाओगे और वो ले गए ईलाज करवा,आप को लगता है की कोई महिला पत्रकार गिर जाए और उसको सारा काम छोड़कर ले जाए इतनी संवेदनशीलता अब बची नहीं है।पहले लोग धीरे-धीरे बनते थे धीरे-धीरे पहुंचते थे लेकिन आज जो राजनेता है जो चुनाव के एस्पायरेंट्स है उनमें ये देखने को नहीं मिलता।
मैं पत्रकार हूं अक्सर मिलता रहता हूं मेरा तो काम ही है,मैं बड़ा निराश होता हूं।अगर मैं कुछ कह दूं तो किसी के अंहकार को गहरी चोट लगे।लेकिन मैं सबसे कम पत्रकार होते हुए सबसे कम नेताओं से मिलता हूं।जिनके अंदर फिल करता हूं की थोडी संवेदनशीलता बची हुई है। देखा जाए तो दस साल पहले तक बहुत लोगों से मिलता था लेकिन अब कम ही लोगों से मिलता हूं।
गांधी जी विज्ञापन नहीं लेते थे वो पूरी दुनिया घूम के आए थे किसी जमुनालाल बाजार से किसी बिड़ला से नवजीवन,यंग इंडिया को निकालने के लिए,आजादी की लड़ाई में इन लोगों ने सहयोग दिया लेकिन व्यक्तिगत पत्र-पत्रिकाओं के लिए वो सहयोग नहीं लेते थे वो सब्सक्रिप्शन बेस्ट माडल पर भरोसा करते थे वो दौर अलग था वो इसलिए था की गांधी जी ने जो पत्र-पत्रिकाएं निकाली वो जनमानस को जगाने के लिए निकाली,उसके लेख देखीए तो पूरा आजादी का लड़ाई या आदमी को रुपांतरित करने की पुकार थी।लेकिन धीरे-धीरे पत्रकारिता ने अलग-अलग तरीके के रुप भी धरे जैसे गांधी जी पेड पत्रकारिता और पीत पत्रकारिता के बड़े खिलाफ थे देखा जाए तो पीत पत्रकारिता के कारण दुनिया बड़ी मुश्किलों के दौर से गुजरी है...विलियम पुलिज्जर और विलियम हर्टज भी बड़े अखबार नवीश थे न्यूयार्क में,दोनों के अखबारों में बड़ा मुकाबला होता था। विलियम हर्टज बहुत तेज-तर्रार आदमी थे और शुध्द रुप से स्मार्ट बिजनेस मैन थे।उन्होंने ने क्या किया की अपने अखबारों का उस वक्त दायरा बढ़ाने के लिए उन्होंने स्पेन और अमेरिका के बीच युध्द जैसी स्थिती खड़ी कर दी जो कि स्पेन और क्यूबा के बीच क्लैश चला करता था और उस समय स्पेन का जहाज क्यूबा के तट पर तकनीकी खराबी के कारण डूब गया (ये बात बाद में पता चली)।लकिन विलियम हर्टज के अखबारों ने लगातार हेडिंग को झड़ी लगा दी की अमेरिकी सैनिकों के कारण स्पने का जहाज डूब गया इस कारण अमेरिका और स्पेन में युध्द जैसी स्थिती बन गई,हांलाकि युध्द हूआ नहीं छद्म युध्द तक रह गया तब तक पता चल गया की स्पेन की जहाज क्यों डूबा।
ठीक इसी तरीके से जब वियतनाम और अमेरिका का युध्द हो रहा था तो एक ग्यारह साल का बच्चा उसका आधा शरीर जला हुआ और चिल्लातें हुए सड़क पर भागे जा रहा था।इस मर्माहत कर देने वाली घटना को न्यूयार्क टाइम्स ने अपने फ्रंट पेज पर लगाया और लिखा द टेरर आफ वार उसका शीर्षक लगाया था।और उस एक खबर का अमेरिका में इतना असर हुआ कि अमेरिकी जनता अमेरिकी सरकार के खिलाफ सड़को पर उतर आई।और रातो रात अमेरिका को वियतनाम का युध्द बंद करना पड़ा।